युवा कवयित्री। काव्य कृति-‘ओ रंगरेज’। संप्रति – स्वतंत्र लेखन
रास्ते
आमतौर पर हम वहीं जाते हैं
जहां रास्ते हमें ले जाते हैं
कुछ रास्ते वहां जाते हैं
जहां पहुंचकर कोई रास्ता नहीं बचता
कुछ रास्ते हमें
धकेल देते हैं युद्ध की ओर
और कुछ बुद्ध की ओर
रास्ते हमारी उंगली पकड़
ले जाते हैं उस ओर
जहां सभ्यता का वह अंतिम आदमी रहता है
जो खत्म होने को है
इतिहास के पन्नों में
दर्ज हो जाएंगी उसकी गाथाएं
कुछ दिनों बाद
रास्ते चुपके से
वहां खड़ा कर देते हैं
जहां क्यारियों में भरी है
बारूद की खाद और गंध
नजरबंद लोगों के
चेहरों पर जड़ दिए गए हैं
ताले बहुत भारी
रास्ते हमें ले जाते हैं वहां भी
जहां रक्त से सनी सड़कें
विलाप का गीत सुन रही हैं
इसके बाद भी लोग
रास्तों पर चलना नहीं छोड़ते।
बिखरी हैं कहीं
उन्हीं सीढ़ियों पर
कहीं बिखरी हैं
अव्यक्त आहटें प्रेम की
नाव के चप्पुओं से
आ रही आवाजें
नदी की
शांति को
कुछ देर तोड़ कर
प्रस्थान करतीं जल पंखियों की
स्वागत गीत गातीं
कामनाएं
जोह रही हैं बाट परदेसियों की।
संपर्क :ग्राम व पोस्ट-मोहनपुर भवरख, जिला-मिर्ज़ापुर, उ.प्र.- 231001/ मो. 9451185136ई मेल–anumoon08@gmail.com
सुंदर कविताएं ।अनुराधा जी की कविता संवेदना की सघन कविताएं होती हैं जिन्हे अलग ही अंदाज़ में प्रस्तुत किया गया ।
बहुत बहुत बधाई
बहुत धन्यवाद तेज जी
आपकी दोनों कविताएं
रास्ते व बिखरी है कहीं।
दोनों के लिए साधुवाद और शुभकामनाएंंं
मैं सच्चिदानंद किरण भागलपुर बिहार।
बहुत आभारी हूं,लेखनी सार्थक हुई।
बहुत आभार आपका
खूब कविताएँ
पूनम जी बहुत धन्यवाद कविता पसन्द करने के लिए
दोनों ही कविताएं बहुत ही अच्छी और प्यारी है , मित्र । हम आपकी ओर भी कविताएं पढ़ना चाहेंगे,
बहुत आभारी हूँ आपके स्नेह के लिए