कविता, शार्ट फिल्म, पत्रकारिता, अनुवाद में रुचि। प्रकाशित कविता संग्रह- ‘सफेद लोग’।

सुपरिचित मराठी दलित कवि। आठ कविता-संग्रह प्रकाशित। दलित आंदोलन से भी संबद्ध।

1-लैंडस्केप

कितना आनंददायी होता है
कैनवास पर सूर्योदय की पेंटिंग करना
वैसे ही सूर्यास्त का भी
विशाल लैंडस्केप बनाना
पर्वत मालाएं दिखाना
पेड़-पौधे चित्रित करना
दूर तक फैला हुआ जंगल उभारना
सब कुछ हरित दिखाना चित्रित करना
इंसान को खा जानेवाले बाघ का पोर्ट्रेट बनाना
चित्र बनाते-बनाते उसी में पूरी तरह रच-बस जाना
नशे की तरह उसमें रम जाना
अंधे भक्त की तरह तालियाँ पीटना
कितना तकलीफदेह है
भिखारी का चित्र बनाना
कुपोषित बच्चे का छोटा-सा मुंह
और बड़ा सा पेट उकेरना
अभावग्रस्त झोपड़ियां चित्रित करना
भूखे पेट ग्राहक का इंतजार करते
वारांगना बहन का चेहरा कैनवास पर उतारना
लैंडस्केप
भूकंप में समाती जमीन के
बनाते रहो यूंही
ऐसे ही आनंदमय होकर जीते रहो!

2-निकल लिए

बूढ़े बाबा को
पूरी ताकत से रिक्शा खींचते देख
अपने आपको ही दी मैंने गाली
फिर राजनेताओं को दिया शाप
इस फालतू व्यवस्था की ऐसी-तैसी
शर्मिंदा होने से बचने की खातिर
आवेग में समाज सुधारकों को कहा नपुंसक
जरा भी शर्म नहीं आती?
ऐसा पूछते ही
साथ के प्रबुद्ध ज्ञानी बोले
‘यह पिछले जन्मों का कर्म है’
मैं बस था असहाय
संपूर्ण व्यवस्था पर थूकने के अलावा
मेरे पास कोई चारा नहीं था।

3-सिंह

उसका विकराल रौद्र रूप देखकर
मुझमें सदा ही रहती दहशत
वह दूर से आवाज देता
तो मेरे पसीने छूट जाते
ऐसे ही अविरत चलते-चलते
मैंने पाया कि
उसके भयानक दिखनेवाले पंजों में
नाखून हैं ही नहीं
गौर से देखने पर पता चला
उसके दांत भी नहीं हैं
जुटा कर साहस, सारी ताकत
मैंने उसके पिछवाड़े
मारी एक जोरदार लात!

4-जय हो

वह प्रौढ़ कुमारिका
मेरे पास आकर दुखी मन से बोली
‘भय्या, मेरे लिए कोई रिश्ता देखिए न
किसी भी जाति का चल जाएगा!
दूसरे दिन मुझसे फिर मिलने आई
और कहा
‘जाति कोई भी चल जाएगी
लेकिन धर्म हमारा वाला होना चाहिए!

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