वरिष्ठ कवि एवं समीक्षक। ‘चलो कुछ खेल जैसा खेलें’, ‘छाया का समुद्र’(कविता संग्रह)।

आखिर
तुम्हारे दुख का वजन मुझसे अधिक था
मैंने बहुत कोशिश की
कि बटखरे में थोड़ा हेर-फेर कर लूं
और मैंने किया भी
पृथ्वी ने मेरी हर चाल को नाकाम कर दिया
जाने कैसे हर बार रख देती थी अपना दिल
तुम्हारे बटखरे पर और मेरी चालाकियों को
ध्वस्त कर देती थी
आखिर मैं भी पुरुष हूँ
तुम्हारे दुख का उत्सव मनाने की
तैयारी कर रहा हूँ।
पत्तियाँ
मैं गिरी हुई पत्तियों के पास खड़ा
उनका रोना पढ़ रहा हूँ
हवा ने तो गिरते हुए फोटो खींच ली उनकी
और गिरा दिया लावारिस
सूरज के पश्चिमी तट पर
वहां झींगुर उन्हें कुतर रहे हैं
आनंदित होते हुए।
पंडित भीमसेन जोशी की स्मृति में
पंडित जी ने कतई नहीं सोचा होगा
कि उनके कमरे और रियाज करने वाली जगह
का क्या होगा जब वे नहीं रहेंगे
कितनी तकलीफ और उदासी में होगा उनका जीवन
जिसमें राग दरबारी का वह समय नहीं होगा
जो घड़ी के समय से
संचालित नहीं होता
नहीं होंगी भैरवी के भीतर गुंजार करती चिड़ियाँ
वे भजन कितने निष्राण हो जाएंगे
जिनमें ईश्वर सुरों की चाकरी करने पर
मजबूर हो जाता था
कभी कभी सोचता हूँ
‘जो भजे हरि को सदा’ में
लीन होकर ईश्वर हर बार
हर बार यह घोषित करता होगा
कि सच्चा सुर ही ईश्वर है
और कोई नहीं कोई नहीं
कोई नहीं
और कितना गदगद होते होंगे सवाई गंधर्व
जहां भी होंगे गर्व कर रहे होंगे
वहीं से दे रहे होंगे आशीर्वाद राग दुर्गा में पहाड़ को
पानी की तरह तरल बनाते हुए
पंडित जी के रियाज में एक ऐसी तितली थी
जो सिर्फ सुरों के फूलों पर बैठती थी
वह तितली कहां चली गई किसी को नहीं पता
उनके आलाप से पृथ्वी का बोझ कम हो जाता था
बहुत पुराने पीपल के पेड़ की सांसों में
नई कोंपलें फूटने लगती थीं
पंडित जी के आरोह में सूरज मुलायम हो जाता था
और अवरोह में चंद्रमा के चेहरे पर
आ जाती थी
कार्तिक की पूर्णिमा
काल को अंगूठा दिखाती हुई
दीपमालाएं प्रज्वलित हो उठती थीं
सरसों के दाने की तरह गिरती दानेदार तानों से
रेगिस्तान तक की आत्मा में
झमाझम बारिश होने लगती थी
समुद्र की छाती पर जलपरियां नृत्य करती थीं
जलतरंग के उत्सव में
पानी के घुंघरुओं से सम पर आती हुईं
पंडित जी ने कतई नहीं सोचा होगा
कि वे करुणा और वियोग और प्रेम के
प्रत्यक्ष मूल्यांकन में
अपनी मृत्यु के बाद भी जीवित रहेंगे
जीवित रहेंगे
संगीत की अंतिम संभावना तक।
मैंने चिड़िया से कहा
मैंने चिड़िया से कहा कविताएं पढ़ो
तुम्हे अच्छा लगेगा कि मैंने तुम्हारे सुख-दुख को
पूरी शिद्दत से दर्ज किया है कविताओं में
मैं निरुत्तर था
उसने कहा मुझे अपनी उड़ान पर
ज्यादा भरोसा है।
संपर्क :एसोसिएट प्रोफेसर, एवं अध्यक्ष (हिंदी विभाग), नारायण पी.जी.कालेज, शिकोहाबाद–283135 मो.9358430238