चर्चित कवि और समीक्षक। प्रकाशित कृतियाँ- ‘चलो कुछ खेल जैसा खेलें’ (कविता संग्रह) के अलावा आलोचना की तीन पुस्तकें प्रकाशित।

धन्यवाद

मैं धन्यवाद करता हूँ
धन्यवाद करता हूँ उस सड़क का
जिसका अंतिम हिस्सा
दो अनजान शहरों को मिलाता है
उस रोड रोलर का
जो सड़क की डामर पट्टी को इतना सहज बनाता है
कि शहर को गिराने वाले गड्ढे
दोस्ताना व्यवहार में काम करने लगें
धन्यवाद करता हूँ नदी का
जो बिना किसी जाति और लिंग भेद के
सबको आकंठ गले लगाती है
गुनगुनाती है समुद्र से मिलने का गीत
शवों और मूर्तियों तक को देती है
अंतिम श्रद्धांजलि

उस हवा का जो समुद्र से चुटकी भर नमक चुराकर
मेरे बूढ़े माँ-बाप की दाल और जीवन को
बेस्वाद होने से बचाती है
उस कोयल का जो मुझे बेसुरा होने से रोकती है
धन्यवाद करता हूँ उस अंधेरे का
जो सूरज को मेरी खिड़की
खटखटाने का अवसर प्रदान करता है
उस कछुवे का
जिसने परिचित कराया
तेज और धीमे चलने के रहस्य से

उस चिड़िया का
जो मीलों एक बूंद पानी लेकर उड़ती है
अपने नवजात बच्चे की प्यास बुझाने के लिए
उन आंसुओं का जो घृणा और प्रेम के रहस्य को
ठीक समय पर खोल देते हैं
मुस्कुराहटों का
जिनका अर्थ खोलने में जीवन निकल जाता है
पृथ्वी के उस संगीत का
जिसे दुनिया भर के पेड़ एक साथ गुनगुनाते हैं
धन्यवाद करता हूँ
उस अधूरे सच का जिससे फाँसी की सजा
आजीवन कारावास में बदल जाती है
उन पाठकों का जो मेरी कविता को कविता बनाते हैं

उनका भी जो निरक्षर हैं
नहीं पढ़ सकते मेरी कविताएँ
मेरी सांसों में आवाजाही बनाए रखते हैं
पीड़ा को एकरेखीय होने से बचाते हैं
केदारनाथ सिंह की माँ की तरह दादी का
जो सिर्फ भोजपुरी समझती हैं और
उसी भाषा में देती हैं आशीर्वाद
और हाँ! धन्यवाद देने से बच गए हैं जो
उन सभी का
मैं धन्यवाद करता हूँ।

प्रेमियों के लिए गीत लिखना कठिन है

प्रेमियों के लिए गीत लिखना कठिन है
प्रेमियों के सपने इतने कोमल होते हैं जितना
कोमल शब्द का अर्थ
वे कोमलता को
पक्षियों के सपनों की तरह महसूस करते हैं
उड़ते हैं
जैसे बारिश की सड़क पर पैदल चल रहे हों
वे अपने पंख फड़फड़ाते हुए बादलों की पीठ पर
नृत्य करते हैं
वे आकाश में इतना अवकाश भर देते हैं कि
पक्षियों की उड़ान का सारा सौंदर्य
उनकी कल्पना की उड़ान का
नैसर्गिक सौंदर्य बन जाता है
वे उड़ते-उड़ते सूरज को चूम लेते हैं
कमाल है कि सूरज मुस्कुराता है
और पुनः भेज देता है उन्हे अपने बुजुर्गों से
आशीर्वाद लेने के लिए
भूख लगने पर वे चंद्रमा और समय को
भोजन की तरह प्रयोग में ला सकते हैं
इस बात की पुष्टि इससे भी होती है कि
उनकी आंखों के नीचे के काले धब्बे
चंद्रमा के धब्बे से मेल खाते हैं
दर्पण के अनुसार जब वे दर्पण में अपना चेहरा देखते हैं
उन्हें चेहरा नहीं समय के चेहरे पर पड़ी
दरार दिखाई पड़ती है
यह सच है कि अंधकार की रोशनी में
उनकी आंखों का तेज इतना बढ़ जाता है
कि बारिश के बाद
तेजी से निकलती चीटियों तक की इच्छाएँ वे पढ़ लेते हैं
वे चीटियों तक से प्रेम करने की कला सीखने में
संकोच नहीं करते
प्रेमियों के लिए गीत लिखना कठिन है
वे जानते हैं कि प्रेम करना
हवा के छाया चित्र को हवा में निर्मित करना है
वे जानते हैं कि प्रेम करना किसी उफनती नदी पर
पैदल चलने का चमत्कार अर्जित करना है
वे जानते हैं कि प्रेम करना
आँटे को बिना पानी के गूंथना है
वे जानते हैं कि प्रेम करना कहीं पहुंचना नहीं है
पहुंचने का गीत गाना है
जिसे कभी सीखा ही नहीं
इससे पहले कि सभी दिशाएँ
अपनी खिड़कियाँ बंद कर लें
इससे पहले कि कोई ईश्वर या शैतान
प्रेम को परिभाषित करे
इससे पहले कि कोई पुरातन भूख
किसी खुशबू का अंतिम संस्कार करे
इससे पहले कि उनके जीवन में सब कुछ के
पहला होने का भ्रम बचा रहे
प्रेमियों के लिए गीत लिखना कठिन है।

भ्रम

जैसे पेड़ की आंखों में एक सपना हिलता है
किसी चिड़िया के चुपचाप
उड़ जाने के बाद
जैसे एक टहनी अपनी त्वचा उतारते हुए रोती है
एक ताकतवर आदमी की कुर्सी
बनने के पहले
जैसे समुद्र से गुस्सा होकर एक लहर हो जाती है रेत
जैसे बमों के फटने के बाद पृथ्वी की आंखों के नीचे
बन जाते हैं काले गड्ढे
जैसे कोई नाव डूबने के पहले नदी की सांसों को
अपनी सांसों में भर लेना चाहती है
मिलन की खुशबू से
डूबने की पीड़ा को
लबरेज करने के लिए
जैसे हवा बांस वनों से गुजरती है
सीटी बजाते हुए
कहाँ होती है उसे अपने बदन के छिलने की परवाह
जैसे एक प्यादा मृत्यु का अंतिम खेल खेलता है
रानी को प्रसन्न करने के लिए
देवी! इन तमाम बिखरे चित्रों में घूमता रहता हूँ मैं
बदलते मौसमों की आहट की तरह
तुम्हारे गुणा-भाग या
जोड़-घटाव वाले रिश्तों को तलाश करने का भ्रम
ईजाद करते हुए।

रंगोत्सव

तितलियाँ अपने रंगों से रंग रही हैं
सूरज का चेहरा
सूरज के घोड़े अपने खुरों से फेंक रहे हैं
तमाम फूलों के रंगोंवाली
बासंती खुशबू
पेड़ अपने हरे पीले पत्तों से बजा रहे हैं तालियाँ
अंतरिक्ष के नगाड़ों की गूंज में
हवा कर रही है नृत्य बिना किसी रियाज के
बिना किसी लय के सब झूम रहे हैं
मार तमाम लोग एक दूसरे के चेहरे के असुंदर में
सुंदरता का उत्सव मनाते हुए
नई फसल के दाने
फागुन की आंखों में विश्वास में उसकी नसों में
नए समय वाली नई दुनिया का उल्लास
बनकर चटक रहे हैं बेतरतीब
चिड़ियों को अपने साथ खेलने का
आमंत्रण देते हुए
पृथ्वी के तलुवों को गुदगुदाती हुई कोयल
मेरी कविता के रंगों में छपाक-छपाक
नहाती है
और गाती है कोई ऐसा गीत
कि सूरज का चेहरा
शर्म से लाल हो उठता है।

संपर्क: एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष (हिंदी विभाग), नारायण पी.जी.कालेज, शिकोहाबाद-283135 मो.9358430238

ई-मेलः maheshalok@gmail.com