युवा कवि। कहानी संकलन :’मुआवजा’।

बेटियां

बेटियां ससुराल में
जल्दी ही बुनने लगती हैं रिश्ते
किसी चिड़िया के घोंसले की तरह
पराये घर में आकर
उसे अपना घर मानने लगती हैं
काकी मामी चाची बऊआ बबुआ कहकर
वे देने लगती हैं सबको मान-सम्मान

और कुम्हार के चाक पर बरतनों की तरह
वे गढ़ने लगती हैं रिश्ते
उन्हें छोटे-बड़े टोले-मुहल्ले का भी
खास ध्यान रखना पड़ता है
उन्हें बड़े-छोटों के साथ
अपने शब्दों के चयन को लेकर
सर्तक रहना पड़ता है

डालनी पड़ती हैं उनको
सबसे हँसकर बातें करने की आदत

रात को जब चांद धरती पर
उतर कर
रात में तब्दील हो जाता है

और आंखें भीगने
लगती हैं आंसुओं से

ढुलकने लगते हैं तब आंखों के कोर से
बहुत पीछे कहीं छूट गए रिश्ते!

होड़

आजकल कोई किसी से कम नहीं है
लोग रुकना नहीं चाहते
कार पार्किंग की छोटी-सी बात लेकर
गोली चली और सामने वाला ढेर हो गया
बहने लगा सड़क पर
बेतहाशा लहू

छोटी-छोटी बात पर
लोग चलाने लगे हैं चाकू
और चाकूबाजी में मारे जाने लगे हैं निरीह लोग

अब सड़कों पर चलने में डर लगता है
पगडंडियां भी सुरक्षित नहीं हैं

कल फुटपाथ पर घूमने निकला
बीच सड़क पर बिल्ली के एक बच्चे को मरा पाया
पेट बीच से बिलकुल फटा हुआ
लहू के कतरे रोड पर बिखरे हुए

एक दिन एक कुत्ता बीच सड़क पर मरा पड़ा था
दांत बाहर की तरफ निकला हुआ
लोग किसी के पीछे चलने में
अपनी हेठी समझने लगे हैं
निकल जाना चाहते हैं एक दूसरे से आगे

कोई रुककर बात नहीं करता
सब चलते-चलते करते हैं

थोड़ा रुककर सुस्ताने की आदत
शायद आने वाले समय में खत्म हो जाएगी

क्या अच्छा नहीं होगा
तेज चलने की जगह
थोड़ा रुककर सुस्ता लें
और कर लें प्रेम की थोड़ी बातें!

संपर्क: द्वारा श्री बालाजी स्पोर्ट्स सेंटर, मेघदूत मार्केट फुसरो, बोकारो, झारखंड-829144 मो.9031991875 email-keshrimahesh322@gmail.com