युवा कवि। अंग्रेजी के शिक्षक।
हमें होना चाहिए था
हमें होना चाहिए था
झूठ के बीच तनकर खड़ा
सच की तरह
रोटी
सेकती स्त्री के लिए
चूल्हे की आग
और धान के बेहड़ रोपती स्त्री के
कंठ में गीत की तरह
किसी के
पतझड़ में झड़ना था पीली और
पुरानी पत्तियों के साथ
किसी के बसंत में खिलना था
महकना था टेशू के फूल-सा
होना था हवा की तरह
हवा जो
दीये की लौ के जलने में
होती है सहायक
किसी के दुख में साझीदार
मिल बैठकर बांटना था दुख को
थोड़ा थोड़ा
हमें होना चाहिए था मौज का इकतारा
बजना था किसी के एकांत की
मीठी धुन में
नदी सा
बहना था अपनी दिशा में
पहुँचना था किसी समुंदर तक
किसी की
रोटी के निवाले छीनने वालों के खिलाफ
हवा में तनती
एक भींची हुई मुट्ठी
किसी के
सूखते खेतों के लिए पानी
होना था बीज के लिए, और
झूमना था अन्न की बालियों के साथ
किसान के मन में
होना था स्वयं के लिए
एक आईना
देखना-समझना था ठीक- ठीक
अपनी ही छवि को उसमें
हमें होना चाहिए था
अत्याचारी के गाल पर
एक झन्नाटेदार तमाचे की तरह
अफ़सोस कि हम नहीं हो सके
वैसा कुछ भी।
अभी भी
अभी भी सांझ होते ही लौट आते हैं
जानवर पंछी काम पर गए लोग
अपने-अपने ठिकाने पर
अभी भी बची हैं सुबह की ओस
उस पर पड़ती है सूरज की किरणें
तो सफेद चांदी सी दिखती है धरती
अभी भी बचे है वे लोग जो एक जगह
बैठकर पीटते खाते हैं तंबाकू
एक ही बीड़ी से सुलगा लेते है
अपनी-अपनी बीड़ी
अभी भी कहीं-कहीं दिख जाते हैं
बया पंछी के घोंसले
टंगे पेड़ों की टहनियों पर
अभी भी दुख तकलीफ में कंधे पर
कोई न कोई धर ही देता है हाथ
राह चलते लोग
रुककर पूछ लेते हैं हालचाल
अभी भी संचित है
कुछ तालाबों में पानी
अभी मिल जाते हैं उनमें
कमल के खिले हुए फूल
अभी भी पतझड़ में पेड़ झर देते हैं,
पुराने पीले पड़े पत्ते
बसंत लौट लौट कर आ जाता है
अभी भी नदियों में बचा है पानी
और धरती में बीज की
जन्मने की इच्छा
अभी भी बची है सर्दियों में गुनगुनी धूप
गर्मी में चिलचिलाती सूरज की किरणें
और उमड़ घुमड़ कर बरस जाते हैं बादल
नमक ने नहीं छोड़ा है स्वाद
आदमी के खून पसीने और आंसू में
बनी हुई है नमक की उपस्थिति
अभी भी पृथ्वी टिकी है
शेषनाग के फन पर
घूमते हुए अपनी ही धुरी में
अभी भी आदमी में बचा है
आदिम क्रूरता का राग
सभ्यता की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए
हम फिसलते रहे हैं रह-रह कर।
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