मालवा की गंध में रचे-बसे नरेश मेहता की जन्मशती के अवसर पर वागर्थ की मल्टी-मीडिया प्रस्तुति

प्रत्येक नई अभिव्यक्ति को आरंभ में विरोध सहना होता है, लेकिन वर्चस्व वरेण्य बनकर ही रहता है। कल तक, आज की कविता उपेक्षिता थी, लेकिन आज स्वीकृता है। इसका एकमात्र कारण इस काव्य की उपलब्धियां है, जो समग्र हैं। कल जब ज्वार और भी शांत होगा तब अधिक गहराइयां लक्षित हो सकेंगी, व्यक्तिगत भी तथा समष्टिगत भी… (कविता संग्रह की भूमिका का अंश)

‘बोलने दो चीड़ को’ कविता संग्रह से तीन कविताएं : कोई इसे उत्सव कर दे, कामना एवं चाहता मन रचनाकार : नरेश मेहता कविता
आवृत्ति एवं संगीत संयोजन : अनुपमा ऋतु
वाद्य अंकन साभार : केवलिन मैकलॉड, संदीप चटर्जी, देवेंदर प्रताप सिंह, सैम कार्डोन, पंडित रोनू मुखर्जी
दृश्य संयोजन एवं संपादन : उपमा ऋचा
प्रस्तुति : वागर्थ, भारतीय भाषा परिषद कोलकाता