मालवा की गंध में रचे-बसे नरेश मेहता की जन्मशती के अवसर पर वागर्थ की मल्टी-मीडिया प्रस्तुति
प्रत्येक नई अभिव्यक्ति को आरंभ में विरोध सहना होता है, लेकिन वर्चस्व वरेण्य बनकर ही रहता है। कल तक, आज की कविता उपेक्षिता थी, लेकिन आज स्वीकृता है। इसका एकमात्र कारण इस काव्य की उपलब्धियां है, जो समग्र हैं। कल जब ज्वार और भी शांत होगा तब अधिक गहराइयां लक्षित हो सकेंगी, व्यक्तिगत भी तथा समष्टिगत भी… (कविता संग्रह की भूमिका का अंश)
‘बोलने दो चीड़ को’ कविता संग्रह से तीन कविताएं : कोई इसे उत्सव कर दे, कामना एवं चाहता मन रचनाकार : नरेश मेहता कविता
आवृत्ति एवं संगीत संयोजन : अनुपमा ऋतु
वाद्य अंकन साभार : केवलिन मैकलॉड, संदीप चटर्जी, देवेंदर प्रताप सिंह, सैम कार्डोन, पंडित रोनू मुखर्जी
दृश्य संयोजन एवं संपादन : उपमा ऋचा
प्रस्तुति : वागर्थ, भारतीय भाषा परिषद कोलकाता
बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति
शानदार प्रस्तुति, दृश्य संयोजन भी अच्छा रहा.
समयानुकूल प्रभावी प्रयोग.
# रावेल पुष्प, कोलकाता.
वाह! कविता तो जीवन्त हो उठी ! कविता के भावों को साकार करती प्रभावी लय पूर्ण आवाज और तदनुरूप संगीत मन को परवाज करने के हेतु बन गये । वागर्थ की यह प्रस्तुति श्लाघनीय है। ऐसे और प्रयासों से कविता संसार लोकजन्य और बहुश्रुत हो सकेगा ऐसा विश्वास मचल उठा है ।वागर्थ के इस प्रयास को कोटिशः साधुवाद !
हिंदी पत्रकारिता के अच्छे दिन फिर से लौटकर आ गये है यह वागरथ से प्रमाणित होता है बल्कि तकनिकीवदुनिया में अपना क़दम दर्ज कर चुकी है
कविताओं का चुनाव मार्मिक है प्रस्तुति रोचक आकर्षक है
धन्यवाद
शब्द से लेकर दृश्य तक समूचा काव्य बंध अत्यंत तरल, स्निग्ध और प्रभावी
मर्मस्पर्शी, भावपूर्ण। मीठी आवाज और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई।
वागर्थ के माध्यम से पढ़ने का अवसर मिला नहीं तो बड़े कवियों की अच्छी रचनाओं से वंचित रह जाते। संपादक महोदय को बहुत बहुत धन्यवाद। 🙏 🙏 🙏