युवा कवि। पुस्तक : ‘बनारसी दास चतुर्वेदी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का आलोचनात्मक अध्ययन। संप्रति: हिंदी विभाग, कलकत्ता विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक।

संदेश

बादल गरजने का
हवा के तेज होने का
पक्षियों के चहचहाने का
तितलियों के उड़ने का
बिजलियों के चमकने का
बारिश के होने का
संदेश सुन
किसानों की आंखों में
आया पानी।

परदा

मेरे ही भीतर होता है जन्म
मेरे ही भीतर होती है मृत्यु
चश्मदीद गवाह हूँ
उद्भव का विकास का
वर्षों से हो रहे षड्यंत्र का
इतिहास हूँ वर्षों से
होर हे अन्याय का
इनसान के चेहरे के भीतर चेहरे का
हर निर्णय पर हर झूठ पर
हर दुष्कर्म पर हर अपराध पर
खड़ा कर दिए जाने का
एक बार उठा कर देखो
तब पता चलेगा सच
लेकिन परदा बदल दिया जाता है
खेल चलता रहता है।

चूल्हा

एक आग जलती है
एक आग बुझती है
जीवन भर जलती
यह ऐसी आग है
कि कुबेर की संपत्ति को भी
भस्म कर सकती है
इस आग के जलते रहने में ही
हमारा अस्तित्व है
एक दिन इसके न जलने पर
होता है घर में भयंकर तांडव
चूल्हे का बुझना प्रतीक है
शोक का महामारी का अकाल का
इसके जलते रहने के लिए ही
दिन-रात हम चलते हैं
दौड़ते हैं भागते हैं
करते हैं ढेरों काम
इसका बुझना हमारा बुझना है।

संपर्क: सहायक प्राध्यापक हिंदी विभाग, कलकत्ता विश्वविद्यालय, कोलकाता-700073  

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