युवा कवि। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के शिक्षा विभाग में छात्र।

कौन हो तुम?

रेत
सबसे ज़्यादा पानी
सोखती है
फ़िर भी सभी नदियां
रेत पर बहती हैं

एक तुम हो कि
सबकुछ सोख लेना चाहते हो!
तुम रेत नहीं
कुछ और हो
जिसके रहते
कोई नदी नहीं बह सकती।

पानी और कविता

पानी
नहाने वालों के पास ज्यादा है
और पीने वालों के पास बहुत कम
नहाए हुए लोग
नहाए जा रहे हैं
सुबह शाम
जबकि पानी
अभी उन तक पहुंचा ही नहीं
जिन्हें उसकी सबसे ज्यादा जरूरत है
इस धरती पर
पानी और कविता
दोनों सही जगह अभी नहीं पहुंचे।

पृथ्वी और तुम

मुझे पृथ्वी से
बहुत प्रेम है
मैंने कभी नहीं चाहा
कि पूरी की पूरी पृथ्वी
मेरी हो जाए
मैं तुमसे उतना ही प्रेम करता हूँ
जितना कि पृथ्वी से
मैं तुमसे और पृथ्वी से
बस जीने भर की
जगह चाहता हूँ।

सुनो बुनकर

सुनो बुनकर…
अब भी बुनते हो कपड़ा?
सुना मशीन ने तुम्हारी उंगलियां काट दीं
कैसे हो अब?
क्या धागे अब भी पहचानते हैं तुमको?
कभी चुपके से जाना धागों के पास
मशीनों से बचकर
उन्हें बताना
उनके पुरखों के साथ
तुम्हारे कैसे संबंध थे
मेरा विश्वास है
वे जरूर पहचानेंगे तुमको
बुनकर
सुनो बुनकर!

यात्रा

(बलरामपुर के राघवराम के लिए)
जिस समय
कोरोना जैसी महामारी के धुएं से
दुनिया का दम घुट रहा है
उस समय
एक चूल्हे से निकलता धुआं
आसमान में लिख रहा है
जिंदगी बनाम मौत का नारा
घर के भीतर
दो जोड़ी आंखें हैं
जो अकसर भर आती हैं
एक दूसरे को खोने के भय से
फर्श पर गिरते आंसू
लगातार कहते हैं
मुझे फर्श नहीं
मेरी मिट्टी चाहिए

सड़क किनारे लंबी कतार है
भूख और भय से भरे
बूढ़े जवान और बिलखते बच्चों की कतार
सब के सब
दुनिया से निष्कासित
चले जा रहे हैं
एक अंतहीन यात्रा पर
अपने-अपने चेहरे पर
प्रश्नचिह्न लटकाए

फेफड़ों का भरोसा उठ चुका है
अब हवा से
अंतड़ियां
किसी ऋणी की भांति
भूख से मांग रही हैं
कुछ वक्त की मोहलत

आंखें जो भरी हुई हैं
दूर तलक फैली सड़क के उस पार
क्षितिज में डूबती रोशनी-सी जिंदगी को
लपक लेने की चाह से

धड़कनें जो हृदय के नियंत्रण से
बाहर हो चुकी हैं
हाथ हैंडल थामे तय कर रहे हैं दिशा

आगे हैंडल पर झोला है
और पीछे कैरियर पर प्रेम

पैर किसी तानाशाह के हुक्म की सनक से भरे
सैनिक की तरह
पैडलों से कर रहे हैं
युद्ध अविराम
साइकिल के दोनों पहिए
कर रहे हैं
एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा

कांधे पर एक हाथ है
जिसका स्पर्श
बार- बार कह रहा है
हमें अभी और जीना है
और पैरों की सनक दोगुनी हो जाती है।

संपर्क: महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, शिक्षा विभाग / मो.7379041051