विस्लावा शिम्बोर्स्का
1996 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित पोलिश कवयित्री।
अंत और शुरुआत
हर युद्ध के बाद
किसी न किसी को करनी होती है सफाई
आखिर कुछ भी खुद-ब-खुद ठीक नहीं होता
किसी को हटाना होता है रास्ते से मलबा
ताकि लाशों से भरी गाड़ियां वहां से गुजर सकें
इसके लिए किसी को फंसना होता है
कीचड़ और राख में
लोहा- लक्कड़ में
कांच की किरचों में
खून सने कपड़ों में
घर को फिर से घर बनाने के लिए
किसी को बांधनी होती है शहतीर
चमकानी होती है खिड़की
लगाने होते हैं दरवाजे फिर से
फोटो खींचने लायक ये खूबसूरत नहीं होते ये
तैयार करने में इन्हें लग जाते हैं सालों साल
कैमरे जा चुके हैं एक और युद्ध के लिए
हमें फिर से जरूरत है पुलों की
नए रेलवे स्टेशनों की
बाहें ऊपर चढ़ाते-चढ़ाते
चिथड़ा हो जाएंगी
हाथों में झाड़ू लिए
याद करता है कोई अब भी
कि कैसी हुआ करती थी पहले यह जगह
कोई और सुनता है और सिर हिलाता है विस्मय से
लेकिन पहले ही आसपास ऐसे लोग हैं
जो बेमक़सद घूमने लगे हैं
जिन्हें यह सब उबाऊ लगता है
कभी कोई खोज लाता है
खंदक से जंग खाए तर्क
और पहुंचा देता है उन्हें कचरे के ढेर में
जो जानते हैं यहां क्या चल रहा था
उन्हें कम जाननेवालों
और उससे भी कम जानने वालों
अंततः नहीं के बराबर जानने वालों के लिए
राह बनानी चाहिए
मुंह में नुकीली घास की पत्ती रखकर
बादलों को निरखते हुए
चुभनेवाली लंबी उग आई घास को
छांट देनी चाहिए।
अंग्रेजी से अनुवाद :मंजु श्रीवास्तव आकाशवाणी में उद्घोषणा, कार्यक्रम-संचालन, रेडियो नाटकों तथा टेली फिल्मों में अभिनय। एक कविता संग्रह : हजार हाथ ।बांग्ला और अंग्रेजी से कई रचनाओं का अनुवाद। |
संपर्क : मंजु श्रीवास्तव, सी-11.3, एनबीसीसी विबज्योर टावर्स, न्यू टाउन, कोलकाता-700156 मो.9674985495