युवा कवयित्री। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शोधार्थी।
स्थगित आत्महत्याएं
बासन में रखे नमक की तरह
गल रहे सपने
जीवन का स्वाद
अवसाद की ओर बढ़ रहा
मैं मान्यताविहीन जमीन पर उपजी हुई
अनचाहे गर्भ की तरह अनपेक्षित दूब हूँ
कई जोड़ी पैर रौंदते हुए आए
मेरी पीठ पर अस्वीकृत लिख गए
बियाबान अंधेरे में भटकती
वक्त के आईने में अपना अदृश्य चेहरा ढूंढती हूँ
मुझे गुमशुदा होने का भय सताता है
मैं अपनी चुप्पियों में चीखती हूँ
टूटती हैं दीवारें जिनके निशान मौजूद नहीं
अस्वीकृति की आग में
धधकती दुनिया को छोड़कर
मैंने स्वीकार ली हैं अस्वीकृतियां मौन
स्थगित आत्महत्याओं के नाम
लिखी है पाती
सबकुछ खत्म हो जाने के बाद भी
कुछ न कुछ बचा रहेगा जीवन में
शुरू से शुरू करने के लिए।
सिंगारदान
अपने यौवन में अनछुई रह गई धूप का
ताला खोलकर
मेरी दादी आकाश के आंगन में
अपने बाल बिछाए बैठी थी
आत्मा के उजास में झांक कर
मैंने औचक ही पूछ लिया
गवने की चटक चुनरी का रंग
शब्द सिरहाने बैठे
देखता रहा जीवन के खुलते अर्थ
झुर्रियां ओढ़े चेहरा
उदास आंखें
रुंधे गले से कहती मूसल ओखली जांतें में
जाता रहा जीवन
चटक चुनरी साध थी
मन की जुबान ने कभी नहीं चखा स्वाद
धरती ने करवट बदली
बाबा के पदचिह्न मिटे
सिंगारदान सीने से लगाए
विलख पड़ी थी वह
हमार मंगिया सून कईले रे विधना
सुनकर फट गई छाती
वैधव्य के कष्टों की कल्पना कर
सिसक पड़ीं बाकी औरतें
सिंगारदान सीने से लगाए
अचेत पड़ी थी दादी
कंघी क्लिप सिंदूर पाउडर की डिबिया
कुछ पत्ती टिकुली जमीन पर बिखरी हुई थी।
उसका मिलना
उसका मिलना मेरे लिए उत्सव था
कोई मुलाकात हमें मिला न सकी
घाट की सीढ़ियों पर जो पदचिह्न मिले हैं
मेरी जिद के हस्ताक्षर भर हैं
अब हमारे बीच कई मन की दूरी है
कई चौक चौराहे हैं
जो कभी नहीं मिलते
टकराते हैं आपस में
गैलरी में भरी तस्वीरें
मन से मिटती जा रही सूरत
त्वचा से ढरक रही स्पर्श की बूंदें
अभिशप्त मन भटक रहा है दिन-रात
इन आततायी दिनों में अपने होने का शोक
अपनी चुप्पी पर
घृणा से ज्यादा कुछ न कर सकी मैं
तुमसे मिलती तो बताती
धमनियों में शामिल होते भय के बारे में
शर्मिंदा सड़क पर काबिज होती सत्ता
मेरे तुम
तुम्हारे बिना धरती ने
करवट बदलना नहीं छोड़ा
न सूरज ने घर से निकलना
चांद तारे आसमान के आंचल में
अब भी झिलमिलाते हैं
एक अकेली मैं
सुबहें उदास
शाम संभावनाओं के शहर में भटकती हुई
तुम तक पहुंचने वाली रेल की पटरियां
ताक रही हैं
तुमसे मिलना महज़ मिलना भर नहीं
अपने जिंदा होने को
स्वयं प्रमाणित करना भी है!
संपर्क : ग्राम व पोस्ट-चिरकिहिट, लालगंज आजमगढ़-276202 (उ.प्र.) मो.8601315078