आज बस जैसे ही रेलवे क्रॉसिंग से निकली सामने से आती रोडवेज बस को मैंने ध्यान से देखा। आज भी वही दूसरा ड्राइवर था। मुझे चिंता हुई। दूसरेे दिन रेलवे क्रॉसिंग पर ट्रेन आने के इंतजार के दौरान मैं बस से उतरा और दूसरी तरफ खड़ी रोडवेज की ओर चला आया।
बस ड्राइवर को राम-राम कर सवाल पूछा- ‘भाई साहब, रोडवेज के इस रूट के नियमित ड्राइवर दिखाई नहीं दे रहे हैं दो दिन से, उनका रूट बदल गया है क्या?
‘कौन, सतपाल जी? नहीं, रूट नहीं बदला। उनका एक्सीडेंट हो गया है, अस्पताल में हैं इस वजह से मेरी ड्यूटी लगी है।’
मैंने तुरंत बस को देखा, इसकी हालत तो सही सलामत थी। मैंने पूछा- ‘एक्सीडेंट, कब? लेकिन बस तो दुरुस्त है।’
‘बस से नहीं, रात को घर लौटते समय बाइक कार से टकरा गई, जिससे एक पैर और हाथ में फ्रैक्चर आया है।’
‘क्या आप उनका फोन नंबर दे सकते हैं?’
रोडवेज ड्राइवर ने फोन नंबर दिया, फिर प्रश्न किया, ‘भाई साहब, आप सतपाल जी के दोस्त हैं?’
‘नहीं, केवल पहचानता हूँ।’ कहकर वह बिना रुके सीधा अपनी बस की ओर चल पड़ा। आखिर इस सवाल का जवाब भला क्या दिया जा सकता है, क्योंकि उनके बीच केवल मुस्कराहट का रिश्ता था। पिछले तीन सालों से इस रेलवे क्रॉसिंग से बसों के गुजरने के दौरान दोनों ड्राइवरों कीआंखें जब भी मिलतीं वे मुस्करा देते थे।
द्वारा देवप्रकाश शर्मा, हाउस नंबर -187, ककराला, पोस्ट – ककराला, तहसील – कनीना, जिला – महेन्द्रगढ़, हरियाणा-123027 मो. 9729266239