शोध छात्रा, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी

लड़की और रोटी

लड़की से कहा गया
रोटी बनाना सीख लो
एकदम गोल-गोल
जैसे चांद हो

लेकिन
लड़की ने
रोटी चक्र की तरह बना दिया
जो धारदार हथियार था

लड़की से कहा गया
ऐसी रोटी बना
जिसमें एक भी चकत्ता न हो
जैसे किसी अप्सरा का रूप हो

लेकिन
लड़की ने ऐसी रोटी बना दी
जैसे चेचक के दागों वाला चेहरा
जिसकी कुरूपता असह्य हो

लड़की से कहा गया
ऐसी रोटी बना
जैसे यौवन से भरी
नायिका के वक्ष हों

लेकिन
लड़की ने ऐसी रोटी बना दी
जो पिचकी सी थी
जिसकी सौंदर्यशास्त्र के ढांचे में
कोई जगह नहीं थी

लड़की जितनी बार रोटी बनाती
उतनी बार तोड़ती
पितृसत्ता के मानकों को

लड़की के लिए
जैसे
रोटी प्रतिरोध का जरिया बन गया
जिसे वह बार-बार दोहराती

इस तरह लड़की
रच रही थी
प्रतिरोध की एक और कला।

प्रेमपत्र

आती रहेगी प्रेमपत्र की खुशबू
किताबों के पन्नों से
उस खुशबू को कैसे निकाल पाएगा प्रेत

पहाड़ों की दरकनों में भर जाएगा
प्रेमपत्र का एक-एक अक्षर
उन पहाड़ों को कैसे नोच खाएगा गिद्ध

बारिश से गला हुआ प्रेमपत्र
समुद्र की गहराइयों तक पहुंच जाएगा
आग की लपटों से
प्रेमपत्र और भी निखर जाएगा
प्रलय के दिनों में
नाव बन जाएगा प्रेमपत्र

वे लगाते रहेंगे बंदिशें प्रेमपत्र पर
फिर भी लिखा जाता रहेगा प्रेमपत्र
और इस तरह
सृष्टि के अंत तक बचा रहेगा प्रेमपत्र ।

मुझे फख़्र है उस प्रेमी पर

मुझे फख़्र है उस प्रेमी पर
जो अपनी मुठ्ठियों को हवा में ताने हुए खड़ा है
जिसकी आंखों में ज़िद है हक़ की लड़ाई लड़ने की

मुझे फख़्र है उस प्रेमी पर
जिसकी ज़ुबां पर आज़ादी के नारे गूंजते हैं
जो जम्हूरियत के लिए लड़ रहे पूरी आवाम से मोहब्बत करता है

मुझे फख़्र है उस प्रेमी पर
जो अपनी पीड़ा को भी अपनी हिम्मत बना लेता है
जिसके हौसलों को तूफान भी डिगा नहीं पाता है

मुझे फख़्र है उस प्रेमी पर
जिसके विचारों में भगत सिंह,पेरियार,बिरसा,अंबेडकर बसते हैं
जिसे प्रिय है फ़ैज़,पाश और विद्रोही की कविताएं

मुझे फख़्र है उस प्रेमी पर
जो एक मासूम सा बच्चा बन जाता हैअपनी प्रेमिका से लिपट कर
जिसका स्वाभिमान से भरा सिर मां की गोदी में झुक जाता है

मुझे फख़्र है दुनिया के उन तमाम प्रेमियों पर
जो बेबाक,निडर और आत्मविश्वास से भरे होते हैं
जिनके दिलों में बसता है उनका मुल्क ।

मैं तुम्हें बार-बार लिखूंगी

मैं तुम्हें बार-बार लिखूंगी
तुम उतरते जाओगे मुझमें और भी गहराई से
तुम्हारे दर्द को मैं कतरा-कतरा संजो लूंगी

मैं तुम्हें बार-बार लिखूंगी
मेरे कलम की रोशनाई
तुम्हें उजालों से भरती जाएगी
मेरे रंगों से भरे चित्र
तुम्हें नई उम्मीदों से भरते जाएंगे
कुछ इस तरह मैं अपने शब्दों को तुम से भर दूंगी

मैं तुम्हें बार-बार लिखूंगी
जब तुम थक जाओगे
अपने अकेलेपन से निराश हो जाओगे कभी
तब मैं कैनवास सी तुम्हें अपनी बाहों में भर लूंगी

मैं तुम्हें बार-बार लिखूंगी
इस कायनात के आख़िर तक
तुम पढ़े जाओगे मेरे लिखे में
तुम्हें कुछ इस तरह मैं अपने गीतों में रचूंगी

मैं तुम्हें बार-बार लिखूंगी।

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