कविता लेखन में सक्रिय।हाल के कविता संग्रह उन्हीं में पलता रहा प्रेम’, ‘सूरज के बीज

बेटियों की हँसी से

जिस घर में बेटियां नहीं होतीं
मां अकेले उठाए रखती है
पूरे घर का बोझ
अपने बीमार पड़ जाने के
ख्याल मात्र से ही
वह सिहर उठती है
थोड़ी सी पीड़ा में भी
झट दवाइयां गटक लेती है
अपने बेटों में बार-बार
बेटियों की छवि देखती है
उन्हें धीरे-धीरे सिखाती है
घर के कुछ काम काज
मेहमानों के घर आने पर
बार-बार उन्हें ही पुकारती है
काम के बोझ तले
बुदबुदाती हुई
अपने गम उन्हें ही बताती है
उनके साथ हँसती बतियाती
उन्हें ही अपनी सखियां बना लेती है
इस तरह वह अपने बेटे में
बेटी के कोमल हृदय को रोपती है

आखिर बेटियां ही तो समझ पाती हैं
मां का निर्जन एकांत
बेटियों के हृदय से ही तो
निकलते हैं जीवन के गान
बेटियों की हँसी से ही तो
झरते हैं फूल
बेटियों की हँसी से ही तो
महकती है दुआर की धूल।

पिता की परछाइयां

बेटियां होती हैं
पिता की परछाइयां
और मां का मन

छुटपन से ही
हरदम वे पिता के इर्द-गिर्द
मंडराती हैं
पिता का ख्याल रखती हैं
हँसती खिलखिलाती हैं

वे भले ही घर से हो जाएं दूर
एक अटूट प्रेम की डोर
बांधे रखती है उन्हें
दूर रहकर भी
वे पिता के रूप को
विराट करती हैं
इसीलिए कहलाती हैं बेटियां
पिता का प्रतिरूप।

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