वरिष्ठ कवयित्री। कविता संग्रह अपने अपने आकाश’ , ‘तलाशती हूँ जमीन’ ,‘अपने हस्तिनापुरों मेंऔर सिर्फ स्थगित होते हैं युद्ध।

अरसे पहले पढ़ी पुस्तकों के पन्ने
फड़फड़ाते हैं मेरे इर्दगिर्द
और अपने निर्वासन में खिन्न आशंकित
कुछ अवसाद से भरी मैं
सुकून और आश्वस्ति से खिल जाती हूँ
किसी आत्मीय सान्निध्य के अहसास से
खत्म हो जाता है निर्वासन
अर्थहीन से लगते
लंबे सफर की थकान मिट जाती है
मीलों चलते जाना है की गूंज
अंधेरे रास्तों में खुद अपना ही दीप
अपना ही संबल होने का आह्वान
ऊर्जा, रोशनी और संकल्पों से सराबोर कर देता है
अंधेरी रातों के सन्नाटे को चीर कर
दस्तक देते लगते हैं पुस्तकों के पन्ने
मस्तिष्क के जाले हटा कर
कौंधने लगते हैं
कितने ही चरित्र, संवाद
घटनाएं, संदर्भ और निष्कर्ष
इस विपरीत समय के इम्तिहान में संबल देते हैं
पुस्तक के पन्नों से बाहर आकर
धुंधले प्रेरक चित्र जीवंत हो उठते हैं
अस्तित्व के ज्ञात-अज्ञात खतरों से बचते
और मजबूती पाते मनुष्य के
अनवरत संघर्ष, साहस, क्षमता और संकल्प को
वे कामयाबी की आश्वस्ति देते हैं
इन्हीं पढ़े अध्यायों में
मैं महसूस करती हूँ
सभ्यताओं को दिए गए असंख्य जख्म
दोहराती हूँ
इंच-इंच जमीन के लिए लड़ी हुई
खूनी लड़ाइयों की कहानियां
घोड़ों की टॉप के नीचे
कुचले मारे और हताहतों की त्रासदियां
निष्कासित और विस्थापित लोगों के
अनवरत काफिले
अस्तित्व के लिए छटपटाते लोगों की
थके टूटे पैरों की लंबी यात्राएं
विध्वंस के अनवरत चक्रों के बीच
मशाल बन कर जिंदा रही जिजीविषा
जिंदगी के कुछ अंकुर बचा रखने की जद्दोजहद
वर्तमान को डंस-सी
मृत्युछाया के बीच
पुस्तकों के पन्ने
जीवन और जगत के प्रति
सुकून भरी आश्वस्ति देते हैं’।

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