युवा लेखिका।सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रबंधन के पद पर कार्यरत।
१९ फरवरी २०२१
श की डायरी
फ़रवरी के उन आखिरी दिनों में धूप कुछ चिड़चिड़ी हो चली थी।मैदानों के वसंत में न तो चेरी-ब्लौसम्स के मोनो-नो-अवारे सा तरल सौंदर्य होता है, न ही नवजात श्वेत याक की पीठ सा लैंडस्केप।आईने के सामने बाल काढ़ते समय उस पार से जो दो आंखें मुझे उलाहना देती हैं, वे उसकी हैं।खिड़की से ज़रा-सी धूप गिरते ही मेरे होंठों पर अब भी तुम्हारे डंक की चुनचुनाहट दौड़ जाती है।कब आओगे तुम? आओगे न?
१९ फरवरी २०२१
म की डायरी
कार के रियर मिरर में मैं खुद को देखता हूँ तुम्हारी नज़र से, फिर उसकी आंखों से। ३० के बाद लड़कियां मरेंगी इस चेहरे पर, माई लिटिल मैन-उसने कहा था, जबकि मैं छह फीट लंबा था।तुमने बताया था कि सिमोन द बोउआर भी सार्त्र को ‘लिटिल मैन’ कहा करती थीं।तब मैं तुमसे पूछना चाहता था कि कौन होता है लिटिल मैन? वह पुरुष जो कभी उसके लिए काफी नहीं था, नहीं है? जो इतना भी पुरुष नहीं था कि तुम खुद उसके दिल को उसके सामने किसी गुलदान की तरह फेंककर उसके टुकड़े-टुकड़े कर सको? पर मैं कुछ पूछ पाता उससे पहले ही तुम बोल उठीं, कब आओगे तुम?
मैंने दरवाजा पार करते-करते कहा- मेरा इंतजार मत करना।
तब बिना आवाज तुम कुछ बुदबुदाईं, पर वह क्या था, यह जानने का साहस कर पाऊं उतना पुरुष मैं अभी भी नहीं हुआ रे!
१९ फरवरी २०२१
श की डायरी
घरों में बत्तियां टिमटिमाने लगी हैं।बाहर आकाश इतना ठंडा हो उठा है कि अब केवल कौए ही उसे पढ़ सकते हैं।फोन बजता है और मेरे होंठों से शब्दों की जगह आकाश का रंग झरता है।
‘पहुंच गए?’ उफ़! फ़िर वही मूर्खतापूर्ण सवाल?
‘हां।’
‘बाहर तारे कैसे हैं?’
‘मैं ऑब्ज़रवेटरी से तारे नहीं, उनके बीच के खाली स्थान की स्टडी करता हूँ।ठीक वैसे जैसे तुम कवियों के लिए हाइकु में मा के सिद्धांत का महत्व होता है।’
‘उसने कहा था?’
‘नहीं।तुमने बताया था।’ उसकी आवाज़ में खीज साफ सुनाई दे रही थी।
उसके यह कहते ही शरीर में जैसे करोड़ों आकाशगंगाएं एक साथ खिल उठीं।उस रात मैं भूल गई थी कि मुझे छूने से पहले ही तुमने साफ कह दिया था कि तुमने मुझ अजनबी से पहली बार बात छेड़ी ही इसलिए थी, क्योंकि मैं हूबहू उसकी तरह दिखती थी।मैं भूल गई थी कि अब तुम्हारे उजाड़ हृदय में चेरी-ब्लौसम्स नहीं खिलते।मैं भूल गई थी, तुमने कहा था कि तुम मुझसे प्रेम नहीं करते।उस रात डोरोथी लैस्की की कविता‘पोएम टू एन अननेमेबल मैन’ न जाने मैं कितनी बार पढ़ गई।उस रात मैंने एक सपना देखा, जिसमें आकाश की ओर तेजी से बढ़ता एक आग का गोला था।एक जलता हुआ पेड़ था जो दस स्याह सर्पों में बदल गया।मेरी देह थी जिसमें आवाज़ों की हज़ारों कब्रगाहें बसी हुई थीं।बस तुम नहीं थे।
२५ फरवरी २०२१
श की डायरी
आजकल जी कुछ अजीब-सा हो रहा है।अपने ही लिखे से उबकाई आती है।पन्नों पर शब्द टिमटिमाते हैं पर अपने चमकीले कुर्ते के नीचे वे केवल प्रेत हैंऔर उनकी देह धुआं।विश्वास निर्भर करता है सत्य से पर्याप्त दूरी और समय की सही मात्रा पर।मैंने उसे कभी नहीं देखा, पर हर समय उसका प्रेत मुझे अपने आलिंगन में जकड़े रहता है।उसकी प्रेतीली जकड़ से मेरे बदन में कंपकंपी-सी दौड़ जाती है।
‘मुझे कैसियोपिया कब दिखाओगे?’ मैंने तुमसे पूछा था।
‘शहर में लाइट पॉल्यूशन बहुत है’, तुम्हारा उत्तर था।
मेरी आत्मा सर्द होने लगी है।तुम पहले नहीं थे और तुम आखिरी नहीं होगे।पर अभी मैं मर रही हूँ।
२५ फरवरी २०२१
म की डायरी
जब सारी सांकलें एक साथ खुल जाती हैं,
वसंत के खुर मेरी आत्मा को रौंद जाते हैं।
झूठ कहा था तुमसे मैंने कि मुझे चिढ़ है कविताओं और कहानियों से।यहां आकर सबसे पहले मैंने उसे ढूंढा।वह यहां भी नहीं थी।उसे गोर्की की कहानी मकरछुद्रा बहुत पसंद थी।वह स्वयं भी तो राद्दा ही थी गर्वीली बुद्धिमत्ता से चमकती उसकी आंखें, उसका क्रूर प्रेम।पर मैं लाइको ज़ोबार न था।टेलीस्कोप के उस पार तारामंडल दहकते हैं, पर लद्दाखी आकाश के नीचे सर्द हवाएं मुझे अंदर तक भिगो देती हैं।मैं कांप उठता हूँ और मेरी देह पर बेमौसम बारिश की तरह एकांत गिरता है।मैंने उसे टूटकर प्रेम किया, पर कोमलता मुझे केवल जनवरी की उस अमावस में तुम्हारे छोटे-छोटे पैरों के तलवों पर सरसों का तेल मलकर मिली।तुम्हारे नन्हे से पैरों को देखकर कौन कहेगा कि तुम पैंतीस की हो।सिंड्रेला की तरह हैं तुम्हारे पैर, पर तुम हो बिलकुल ‘द लिटिल मरमेड’ की जलपरी की तरह जिद्दी। ‘द लिटिल मरमेड’ की कहानी डिज्नी की तरह सुखांत नहीं थी, मेरी बौड़म रानी! तारामंडलों को अब मैं केवल निहार सकता हूँ, उन पर रिसर्च-पेपर लिख सकता हूँ, पर तारों को छूने के लिए अब बहुत देर हो चुकी है, लेकिन मैंने तुम्हारे पैर के तलवों को छुआ है।
१५ मार्च २०२१
श की डायरी
तीन दिनों से बारिश रुकी नहीं थी और अंदर हम दोनों ने खूब टूटकर प्यार किया।उन क्षणों में मैं कल्पना करती, तुम उसका नाम पुकारो और मेरा तन रोमांच की एक अजीब तरंग से सिहर उठता।उसका नाम एक अंतिम परीक्षा था।मैं जानना चाहती थी, क्या उसका नाम लेने के बाद भी हमारे बीच की जादुई दुनिया बसी रहेगी या उसका नाम तिलिस्म तोड़ देगा।हम दोनों दो पटरियां थे और जब उसका नाम एक रेल की तरह हमारे ऊपर से गुजरता, हम बस थरथराकर रह जाते।सुनो! कहीं तुम्हारी तरह मैं भी तो उसके प्रेम में नहीं पड़ गई।नहाने के बाद जब मैं अपने बाल तौलिए से झाड़ रही थी तभी अचानक मेरी रुलाई छूट पड़ी कि कभी नहीं जान पाऊंगी मैं अपने हमचेहरे को।कभी नहीं जान पाऊंगी उसका नाम, उसके पसंदीदा कवि।कभी नहीं जान पाऊंगी कि उसे पहाड़ पसंद हैं या समुद्र या रेगिस्तान।जब हम एक रास्ता चुनते हैं तो न जाने कितने और रास्ते छूट जाते हैं।मैं कौन-सा रास्ता चुनूं, जिससे अपने हमचेहरे के पास पहुंच सकूं।कितना चाहती थी कि तब तुम मुझे आकर संभालो, पर अंदर आकर देखा तो तुम बिस्तर पर औंधे मुंह सोए हुए थे और तुम्हारा तकिया आंसुओं की नई धार से भीगा हुआ था।
१५ मार्च २०२१
म की डायरी
जब हम दोनों एक दूसरे के समानांतर लेटे हुए थे, तुम्हारी आंखों में कुछ कौंधा-सा था।पहचानता हूँ मैं अपने आखेट का पीछा करती व्याध की दृष्टि को।ऐसे में तुम और वह दोनों एक हो जाती हो।तब मन करता है कि ज़ोर से पुकारूं मैं तुम्हारा नाम और तोड़ दूं इस तिलिस्म को।पर नाम खुद एक कंस्ट्रक्ट होते हैं जादू के भ्रम को बनाए रखने के लिए।प्रेम की नियति ही क्रूरता है।हम-तुम इस नियति से नहीं भाग सकते।शायद एक-दूसरे से प्रेम न करना ही हमारी सबसे बड़ी दया है एक-दूसरे के प्रति।तुम्हारा प्रेम ब्लैक-होल है मेरी बौड़म रानी, मैं नहीं चाहता कि यह मेरे अस्तित्व को लील जाए।
२० मार्च २०२१
श की डायरी
मैं तुमसे प्यार करती हूँ।
मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ।
मैं तुमसे इतना प्यार करती हूँ कि अब तुमसे नफरत-सी होने लगी है।
मेरे कमरे में अस्सी के दशक का कोई जापानी गीत बज रहा है और संगीत मुझे बहाए ले जा रहा है।मैं अपने दुख की पंखुड़ियां गिनती हूँ, उसे अपनी गोद में रखकर लोरी सुनाती हूँ।इस नीले मौन में मेरा दुख केवल एक मरती हुई चिनगारी है।अब दिन में केवल पचपन घंटे हैंठीकउनतिलों के बराबर जो तुम्हारी रात्रि-देह पर मैंने गिने थे जब अपनी सिसकी का छोर पकड़े दूर जाने से पहले तुमने उसे तह लगाकर मुझे सौंप दिया था।मैं जीवित हूँ।मैं मर रही हूँ।मैं कविता लिखती हूँ, चाय बनाती हूँ, मरने का ढोंग करती हूँ पर मरती नहीं।बाहर दरवाजे पर दस्तक होती है।कभी मैं खिड़की से झांक भर लेती हूँ,बाहर बारिश सर झुकाए खड़ी होती है।कभी दरवाजा खोल भी देती हूँ।कभी मेरा मन बारिश के मन से जोड़-गुणा करके और अधिक सघन मौन को जन्म देता है।
१० अक्टूबर २००५
वो की डायरी
वो उन्नीस साल का लड़का ही तो था पर उसकी आंखें किसी पुरुष की थीं।एक देह मछली के रूप में आरंभ होती है और अंत में रूप धरती है बारिश का।पर उसमें इतनी छोटी उम्र में बहुत कुछ बारिश ही था।लोग कहते हैं, हमारे बीच जो हुआ, वह इसलिए हुआ, क्योंकि वो हैंडसम था और भोला भी।हैंडसम बहुतेरे होते हैं और उस समय वो अनुभवहीन ज़रूर था पर भोला कभी नहीं।लोग ये भी कहते हैं कि जो हुआ वह गलत था और मैंने उसका फायदा उठाया।बकवास! वो कोई बच्चा नहीं था।मुझे छूते वक्त उसके हाथ कांप रहे थे पर ही वाज़ अ क्विक लर्नर।मैं उसे चोट पहुंचाना नहीं चाहती थी।मैं बस कुछ देर भीगना चाहती थी।थोड़ी सी बारिश में भीगी धरती की महक उधार लेकर अपने अभिशप्त जीवन में थोड़ा-थोड़ा सुकून पीना चाहती थी।जिस रोज मैं उस लड़के से पहली बार मिली, ट्रेन में मैंने अपने हमचेहरे को देखा।लोग कहते हैं अपने हमचेहरे को देखना आने वाली मृत्यु का संकेत होता है और सच, मैं उस दिन मरना ही चाहती थी, पर उस दिन वो अधेड़ आंखों वाला लड़का मुझे मिला और तब से हर रोज अपने हिस्से की मौत उसे थोड़ी-थोड़ी देकर मैं प्रेत की भांति इस संसार में भटकती रही।
२७ मार्च २०२१
म की डायरी
मैं बच्चा नहीं था तब, न ही अब हूँ।पर तुम्हारी कातर दृष्टि का कोई उत्तर नहीं है मेरे पास।मैं क्रूरता सह सकता हूँ और मैंने सही भी है, पर तुम्हारे प्रेम की उद्दामता और समर्पण मुझे खोखला कर जाते हैं।मेरे हाथ फोन पर तुम्हारा नंबर पूरा डायल करने के बाद रुक जाते हैं।पठार की हर रात यह एहसास होता है कि यह तुम हो जो मुझे चांद कर जाता है।क्यों हूँ मैं तुमसे इतनी दूर? क्या ढूंढ रहा हूँ मैं रात के इस वन में- सुदूर किसी तारे का प्रकाश, जो उसकी रोशनी के धरती पर पहुंचने के हजारों वर्ष पहले ही दम तोड़ चुका है।यह सारा ज्ञान पानी ही तो है,भाषा और पूस के भूतों के बीच आधा-आधा बंटा हुआ।पर मैं अब भी कुछ खोजता हूँ और मेरी खोज ही मेरे जीवित होने का प्रमाण है।मैं पूरी तरह प्रेत नहीं बना।तभी आकाश की नीरवता में मेरा टेलीस्कोप एक अनजान तारामंडल की प्रकाश तरंगें डिटेक्ट करता है।मेरे हाथ फिर फोन पर तुम्हारा नंबर डायल करते हैं।
२७ मार्च २०२१
श की डायरी
मार्च के महीने ने जैसे अपने माथे से कोई सपना निकालकर मेरे गले में अटका दिया हो।शुक्र है, अभी रात है वरना ये सारे नए खिले फूल-पत्तियां जैसे इन दिनों को एक फूहड़ता से भर देते हैं।चांदनी अपनी चम्मच से मेरी आंख के किनारों से दो मोटे आंसू निकालती है और एक घूंट में पी जाती है।मेरा फोन बजता है।मैं अब तारामंडल में बदलने लगी हूँ।मेरे हाथों की जगह अब करोड़ों पुच्छल तारे हैं।फोन पर तुम्हारा नाम चमक रहा है।मैं अब फोन उठा नहीं सकती, पर तुम्हारी नदी सी खिलखिलाती हँसी गूंज उठती है।
तुम कहते हो, ‘मुझे कविता पसंद है।मुझे मेरी ऑलिवर पसंद हैं।जब तुम लिखते-लिखते कोई गीत गुनगुनाती हो तब तुम्हारे गालों पर बिखरी लाली मुझे पसंद है, मुझे बारिश पसंद है, मुझे धूप पसंद है, रात को दौड़ती ट्रेन की दूर से चमकती बत्तियां मुझे पसंद हैं, मुझे तुम पसंद हो।’
मैं कहती हूँ, ‘मैं अब एक तारामंडल हूँ।अब हम नहीं मिल सकते।’
तुम कहते हो, ‘मैं तुम्हें ढूंढ लूंगा।’
मैं पूछती हूँ, ‘कब?’
तुम कहते हो, ‘जब मैं आधे प्रेत से पूरा इंसान बन जाऊंगा।’
मैं कहती हूँ, ‘मैं इंतजार नहीं करूंगी।’
मैं अब इतनी रोशनी बन चुकी हूँ कि मेरे शब्द ऊष्मा, और मेरे विचार अंतरिक्ष बन चुके हैं।मेरी आत्मा में अनेक तारे जन्म लेते हैं और अनेक तारे शून्य में मिल जाते हैं।मैं विलीन हो रही हूँ, साथ ही स्वयं को पा भी रही हूँ।मैं उसे देखती हूँ, यूरोप के किसी छोटे शहर के रेलवे स्टेशन पर आने वाली ट्रेन के इंतजार में रिल्के की पंक्तियां गुनगुनाते हुए।मैं तुम्हें देखती हूँ आंखें ऊपर उठाए मुझे ताकते हुए।मैं अब केवल उसकी मिरर इमेज नहीं रही, इस ब्रह्मांड में घटने वाला सब कुछ मेरा प्रतिबिंब है।मैं अलविदा नहीं कहूंगी ‘माय लिटिल मैन’, अभी तो हमें हजारों बार फिर-फिर मिलना और बिछड़ना है।
संपर्क : फ्लैट नंबर—जी १, ६२३, साईं शारदा श्री अपार्टमेंट, लखनपुर हाउसिंग सोसाइटी, विकासनगर, कानपुर–२०८०२४ (उ.प्र.) मो.८७०७८९६०२३