इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रथम वर्ष का छात्र।
जो टूटे हैं प्रेम में
कल जब मैं सुबह सोकर उठूंगा
और खिड़की से बाहर देखूंगा
कोई कली खिल उठेगी
या कोई बयार इठलाती हुई
किसी पेड़ के कान खींच कर
भाग जाएगी
और दर्द से सुसुआते हुए पेड़
को चुप कराने के लिए
लोरियां गाने लगेगी कोयल
और अचानक ही फूट-फूटकर
रोने लगेंगे बादल
खिड़की के बाहर तुम हो
कली बयार कोयल बादल और बूंदें
मैं पेड़ हूँ
जिसका बादलों के रोने से
दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है
लेकिन उसकी पत्तियां चक्कर काटती हुई
गिरती हैं
बूंदों के साथ
अनायास!
बूंदों को फिर उठाकर
बादल बना देगा सूरज
पत्ते कभी पेड़ नहीं हो पाएंगे
जो टूटे हैं प्रेम में
वे पीछे ही रह जाएंगे।
जंगल खतम होंगे सपनों के जलने से
सपने जंगल की आग की तरह
खतम हो जाएंगे
जंगल के खतम होने के बाद
जंगल और सपने एक साथ खतम होंगे
सपने खतम होंगे
जलते हुए जंगल के धुएं में
जंगल खतम होगा
खतम होते सपनों में
अंत में बचेगी राख… बहुत सारी राख
सपने जले नहीं हैं
खतम हुए हैं
खतम हो रहे सपनों को जलाने से
जलेंगे जंगल।
वीराने में जाया होती सुंदरता के प्रति
दूर-दूर तक फैली हुई
सफेद चादर को समेटकर
कौन-सा चांद आया था
रात ढूंढ़ते हुए
तुम्हारे बालों में सोने के लिए?
दुख की मिठास को समझने वाली
पृथ्वी के सबसे रंगीन छोर से
तुम्हारे आंसुओं को उठाने
कौन-सी मधुमक्खी आई थी?
सबसे मधुर गीत जो नहीं गाए गए
उनको सुनने के लिए
किस पुरोधा संगीतज्ञ ने
उठा लिया तुम्हारे कमरे का झींगुर?
मृत्यु की विभीषिका से आक्रांत
जब तुमने अमर बनना चाहा
अमृत के किस पहरेदार ने
लिखी तुम्हारे ऊपर कविताएं?
कहो!
किस घाटी का फूल हो तुम?
कौन-सी नदी फूटी थी
सिर्फ तुमको छूने के लिए?
कहो!
किस पर्वत की चोटी हो तुम?
कौन-सा समुद्र बर्फ हो गया
तुम्हारी जलती छाती को ठंडा करने के लिए?
शवदाह के दौरान चिड़िया के दिखने पर
मैंने सिर उठाया जिन्हें देखने के लिए
और सिर उठाकर देखा जिन्हें
अपने सिर के ऊपर
सबको महत्तर पाया खुद से
छोटी आकृतियों को झुककर देखा
और पूरी जमीन पर केवल चल सकने के कारण
मुझे पंखों की महानता का बोध हुआ
ऊंचाइयों पर पहुंच कर
छोटी चीजों का अस्तित्व मिट जाता है
चिड़िया ने सिर्फ स्वतंत्रता चुनी
और उसे मिला आकाश
और पंख
चिड़िया इस शून्य की विकरालता से
प्रतिपन्न है
मैं भी चिड़िया होना चाहता हूँ
पर मुझे होना होगा शव
चिड़िया होने से पहले
शवदाह के दौरान
चिड़िया को देखकर लगा
कि मौत जब मुझे पंख देगी
तब मैं स्वच्छंद धुएं में बदल जाऊंगा
और उस शाश्वत उड़ान के बाद
कोई नहीं देखेगा मुझे वापस उतरते हुए
और उड़ते उड़ते खो दूंगा मैं
अपना रंग जो मेरे पंख हैं
या उधार ले जाएंगे मांग कर मेघ
रंग खोकर मैं आकाश हो जाऊंगा
और फिर हर पंख
मेरी तरफ आएगा
और हर निगाह का लंगर
फेंका जाएगा मेरी तरफ
मैं किसी याचित स्वतंत्रता की
अयाचित अनिवार्यता हो जाऊंगा।
संपर्क : भरूहना चौराहा, वृंदावन गार्डन के सामने गली में, मिर्ज़ापुर–२३१००१ मो. ६३९३१९६८८४