वरिष्ठ साहित्यकार, बच्चों के प्रिय लेखक।लगभग ढाई दशक तक बच्चों की लोकप्रिय पत्रिका नंदनके संपादन से जुड़े थे।उपन्यास, कहानियाँ, कविता, जीवनी, आत्मकथा सहित बाल साहित्य की सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।साहित्य अकादमी के पहले बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित।

वह स्त्री जो लिखती थी कविताएं

वह स्त्री जो लिखती थी कविताएं
उसने एक-एक कर याद किया सबको
यहां तक कि बरसों पहले छूट गए
बचपन की पुरनिया कोठी
रंगों भरे खेल-खिलौनों और मित्रों और बिना बात
चौंकती शरारतों
द्वार पर रंभाती गाय
और किशोरावस्था में पढ़ी गई किताबों को भी

याद किया उसने छुटपन के अबोध दिनों में
मित्र के साथ मिलकर बनाए गए
नन्हे-नन्हे घरोंदों को
जिन्हें बनाने के बाद छोड़ी गई उनपर
अपनी-अपनी हथेलियों की छाप भी
और फिर हाथों में हाथ लेकर दूर तक की सैर

याद किया उसने
साइकिल के कैरियर पर रखकर किताबें
हवा में उड़ान भरती लड़की को
जिसके सपनों में उतरता था तारों भरा आकाश
और सारी धरती अपनी लगती थी

याद किया उसने तेईस बरस पहले गुजरी
स्नेहवत्सला मां को
जो घर की गरिमा थी स्त्रीत्व की पूर्णता भी
जो खुद से ज्यादा बच्चों में देख पाती थी
अपना होना
खेलती थी गुट्टे तो खुद हारकर
जिता देती थी बेटी को
बढ़ाते हुए जोश और हिम्मत अपरंपार

याद किया मां को तो साथ ही
याद किया उसने
कि कितनी निकट आ गई अब
जिंदगी की शाम और घिरने लगी छायाएं
लंबी परछाइयों सी

उसने घर के हर कमरे में जाकर
याद किया पुरानी चीजों के
पुरानेपन को
टोहती आवाजों का शोर
जो न जाने कब कैसे ढल जाता था कविताओं में
तो समझ में आने लगते थे जिंदगी के मानी

याद किया उसने उस शख्स को जो
पूरी दुनिया घूम आया
पर समझ न पाया
उसे जो घर की चौखट थी
बसी थी एक-एक सांस में…
चप्पे-चप्पे पर बिखरी थी जिसकी खुशबू

याद किया उसने खुशदिल बच्चों को
जो मिलने आए थे कुछ रोज पहले ही तो
पुलकते सपनों सरीखे
और अब जा चुके हैं परदेस
न होगा इस जनम में उनसे मिलना अब

जिंदगी की सांझ है यह ऐसी साधो
जिसकी होगी न कोई भोर…
सुना उसने खुद को
बुदबुदाते हुए एक ठंडी सांस लेकर
और अपने पंख टटोलने लगी

यह आखिरी उड़ान है चिड़िया की
आखिरी…
उसने अपने आपसे कहा
और देखा आखिरी बार उसने छूटते हुए चूल्हे को
रसोई के तवे और करछुल और चकला बेलन को

घर के एक-एक कमरे में जाकर
बटोरती रही कुछ देर
घर की पुरानी यादों की खुशबू
पीले पड़ गए पुराने खतों सी
सलाम किया उसने
घर की चौखट को आखिरी बार
और फिर धरती से धरती की गंध की तरह
उड़ चली अकास…

चलने से पहले इस अनंत यात्रा पर
उसने दर्ज किया डायरी में
अपनी जिंदगी के उदास लम्हों टूटे तटबंधों
और भीतर-बाहर के दुखों का इतिहास…
दर्ज किया उसने घर-आंगन में
पीली पत्तियों का कोरस
बेकल हवा की सिसकी
शहर में आकर सहम सी गई चिड़ियों की उदासी
और डूबती हुई जिंदगी की शाम को
उसने कविता के हरफ-हरफ में दर्ज किया खुद को
जाने से पहले
और खींच दी एक आखिरी लकीर दूर तक
जाती अंतरिक्षों के पार…

ओह, मैं अब समझा
अब…
कि मैं जिसे कविता समझता रहा
यह उसका विदाई गीत था आखिरी
जिंदगी से दूर बहुत दूर जाने से पहले का
समाधि लेख

और अब जबकि वह नहीं है और पढ़ रहा हूँ मैं
उसकी कविताओं की आखिरी पुस्तक
तो आ रहा है समझ में…
पुरानी यादों को सीस नवाकर
वह तो लिख रही थी
अपनी आखिरी सांसों का हिसाब
और अफसोस
उसे समझने में मैंने बहुत देर कर दी।

संपर्क :५४५ सेक्टर२९, फरीदाबाद, हरियाणा१२१००८ मो.९८१०६०२३२७