युवा कवयित्री। अद्यतन कविता संग्रह ‘पेड़ों पर हैं मछलियां’। संप्रतिः अपर जिला न्यायाधीश, बिहार न्यायिक सेवा।
हथेली पर सूरज
हथेली पर पिघलता हुआ सूरज
और मुट्ठी में बंद जिजीविषा
अंधेरी रात सी शांत और बेखौफ
बचा रहेगा कुछ स्पर्श सूरज का
बची रहेगी कुछ शांति अंधेरों की
जब दिन में हौसले भरेंगे अपनी उड़ान
वक्त के सान्निध्य में
सोने नहीं देंगे स्वप्न।
वे जो नहीं होते शरीक
वे जो नहीं होते शरीक
बस शामिल कर लिए जाते हैं बिला वजह
पत्थरों से बिंध जाते हैं सड़क की छाती पर
किसी ऐतिहासिक किताब के
नहीं बन पाते नायक
भविष्य के उत्खनित शिलालेखों पर
जिनकी नहीं होगी कोई शिनाख्त
अंतहीन मरुस्थल पर
चलते गए जो अनगिनत पांव
बचाते हुए मनुष्यता के निशान
जहां रेत से लिपटे हैं पानी के कण
नहीं बना पाते कोई शृंखला
पहाड़ों के आलिंगन के मध्य
किसी खुशबू की आवारगी में
घूमते हुए नहीं छोड़ते अपने निशान
एवरेस्ट पर पहुंच चुके शांति के वाहक
भले इतिहास न करे याद
पर हमारी सरहदों तक घूमती हैं उनकी आंखें
ये बहुत साधारण से लोग
अपने हिस्से की सांस के अलावा
नहीं करते कोई गुनाह
पर शामिल कर लिए जाते हैं
बह जाते हैं किसी जलधारा में सूखे पत्ते की तरह
नहीं पहुंचते किसी नदी के बनाए रास्ते के बावस्ता
न ही किसी समुद्र की लहर की कोर पर।
संपर्क : अपर जिला न्यायाधीश, सिविल कोर्ट सिवान, बिहार–841226