युवा कवि। विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। बच्चों के लिए भी लेखन।

 

पेड़ का बसंत

जब भी मैं
अपने गांव के उस रास्ते से गुजरता हूँ
कुछ पल के लिए ही सही
जरूर रुकता हूँ उस विशाल पीपल के पास
जो तप रहा होता गर्मी में
जो भींग रहा होता है बरसात में
जो ठिठुर रहा होता है ठंड में
जिसके पत्ते झड़ रहे होते हैं पतझड़ में
लेकिन एकटक पेड़ को निहारने से
हमेशा महसूस होता है कि
बस कल से वसंत आने वाला है
क्योंकि मौसम बदलने के बाद भी
आदमी की तरह पेड़ का मिजाज बदलते
मैंने कभी नहीं देखा है।

बराबरी
जब भी तुम
संस्कार शब्द सुनते हो
आह्लादित हो जाते हो
लेकिन जब कभी अधिकार शब्द सुनते हो
बेचैन हो जाते हो
क्योंकि तुम्हें सदियों से सुख मिलता है
किसी को गुलाम बनाकर जीने में
पर आजकल
जब वे हक की बात करने लगी हैं
तुम्हारा भड़कना लाजिमी है!

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