युवा कवि। इग्नू से हिंदी में परास्नातक।
पहाड़
पहाड़ों पर जो पगडंडियाँ हैं
कोई नहीं जानता किसने बनाईं
क्यों बनाईं
‘दादा के दादा ने बनाई’- यह बात
हर दादा ने कही अपने पोते से
इसे सुन पहाड़ खड़ा
कनखियों से उन्हें देख मुस्कराता रहा
जैसे मुस्करा जाता है
एक गुमनाम गीतकार
जब वह सुन ले दो अजनबियों को
उसके गीत की बड़ाई करते हुए
मैंने चुपके से सुन ली थी
एक पत्थर की बातचीत
उसपर गिरते सोते से
मुझे पता चला पहाड़ ने पगडंडियाँ बनाईं
ताकि भेड़ें कतारबद्ध हो चल सकें
और उनके गले की घंटियों से उठती राग मल्हार
बारिश को न्योता दे सकें
कि नई दुल्हनों को
डोलियों में विदा किया जा सके
ताकि एक दिन को ही सही
उनकी एड़ियां बच पाएं कांटों से
ताकि अभी-अभी चलना सीखा पोता
भागकर चीड़ के तने को दादा से पहले छू सके
और खुशी से नाचते हुए
दादा को चिढ़ा सके
जिसपर दादा मुस्कराते हुए
बड़बड़ाएं मीठी गालियां
और पहाड़ों पर हो सके
बसंत का आगमन।
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