युवा कवि।ग़ज़ल संग्रह ये दरिया इश्क़ का गहरा बहुत है।संप्रति अध्यापन।

खर्चे

वे निकलते हैं बांबी से सांपों की तरह
और डंसते चले जाते हैं हमारे वर्तमान को
वे मोड़ जाते हैं कमान की तरह
हमारी तनी हुई रीढ़ को
और उन्नत शीश को धर देते हैं घुटनों पर

वे आते हैं कुटिल मुस्कान लिए
और हमारी बेचारगी पर ठहाके लगाते हैं

वे आते हैं
और बच्चों के गुल्लक चिटक जाते हैं
बुजुर्ग दुबक जाते हैं कोनों में
अपनी पीड़ाओं के साथ
व्यस्त हो जाती हैं जवान बेटियां
बेमन से सिलाई-कढ़ाई में

वे आते हैं और ताकते हैं
घर की हर उस चीज को जो मुद्रा में बदल जाए

वे इस तरह कुंडली मार कर बैठ जाते हैं
हमारे भविष्य पर
कि हमें सांस लेने में भी
एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता है।

कठोर समय

कठोर समय
सचमुच कठोर होता है
किसी चट्टान की तरह
जो हिलती नहीं अपनी ठौर से

किसी फौलाद की तरह
जिसपर हर चोट बेअसर होती है

किसी राजदंड की तरह
जो कठोर से कठोर होता जाता है

कठोर समय में
कठोर हो जाते हैं लोगों के चेहरे
एक इंच मुस्कान भी उभर नहीं पाती
होठों पर
कोई निगाह उठती है हथौड़े की तरह
और गिर जाती है

कठोर समय में
कठोर हो जाती है हर आवाज
जो कानों तक पहुंचती है
कंधे पर रखा हाथ पत्थर की तरह लगता है

कठोर समय भींच लेता है अपनी बाहों में
जीवन की सारी कोमलताएं
लेकिन हर कठोर चीज अपनी कठोरता से
दरक जाती है एक दिन
कठोर समय भी
अंततः कठोर स्मृति बन जाता है।

संपर्क :कृषि उपज मंडी के पास,अकलेरा रोड़, छीपाबड़ौद, जिला बारां, राजस्थान मो.९९२८४२६४९०