आदरणीय, सबसे पहले टिप्पणी के लिए आभार। हमारी पत्रिका हिंदी साहित्य के पुरोधाओं के शब्द और स्वरों को सहेजने के लिए कटिबद्ध है और लगातार प्रयासरत भी है. इस क्रम में हम लगातार अपने सुधि पाठकों, साहित्यकारों से अपील कर रहे हैं कि हिंदी साहित्य के कालजयी रचनाकारों से सम्बंधित ऑडियो, वीडियो सामग्री हम तक पहुंचाकर साहित्य चेतना आगे बढ़ाने की मुहीम में हमारा साथ दें. लेकिन कई बार होता है न कि आवाज़ें सुनाई नहीं पड़तीं, कई बार अनसुनी रह जाती हैं. उसी तरह शायद हमारी आवाज़ भी अभी अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच पा रही, इसलिए फ़िलहाल हम एकला चालो रे की तर्ज पर जितना स्वयं से संभव हो रहा है, उतना प्रयास कर रहे हैं. आप जैसी सुधि दृष्टियों के सुझावों और सहयोग का सदैव स्वागत है. पुनश्च आभार
उपमा ऋचा
बहुत सराहनीय । ससंदर्भित प्रस्तुति। अनुपमजी को बधाई
बहुत बहुत आभार प्रो. विजयनकुमारन सर!
बहुत सुंदर अनुपम जी। कॉलेज के दिनों की याद हो आयी।
बहुत बहुत आभार अमरनाथ सिंह जी!
बहुत सुंदर प्रस्तुति. लेकिन यह कविता यू ट्यूब पर स्वयं दादा की आवाज़ में भी मौज़ूद है. उसका उपयोग किया जाता तो और भी अच्छा रहता.
आदरणीय, सबसे पहले टिप्पणी के लिए आभार। हमारी पत्रिका हिंदी साहित्य के पुरोधाओं के शब्द और स्वरों को सहेजने के लिए कटिबद्ध है और लगातार प्रयासरत भी है. इस क्रम में हम लगातार अपने सुधि पाठकों, साहित्यकारों से अपील कर रहे हैं कि हिंदी साहित्य के कालजयी रचनाकारों से सम्बंधित ऑडियो, वीडियो सामग्री हम तक पहुंचाकर साहित्य चेतना आगे बढ़ाने की मुहीम में हमारा साथ दें. लेकिन कई बार होता है न कि आवाज़ें सुनाई नहीं पड़तीं, कई बार अनसुनी रह जाती हैं. उसी तरह शायद हमारी आवाज़ भी अभी अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच पा रही, इसलिए फ़िलहाल हम एकला चालो रे की तर्ज पर जितना स्वयं से संभव हो रहा है, उतना प्रयास कर रहे हैं. आप जैसी सुधि दृष्टियों के सुझावों और सहयोग का सदैव स्वागत है. पुनश्च आभार
उपमा ऋचा
जानकारी देने के लिए बहुत बहुत आभार दुर्गाप्रसाद अग्रवाल जी. मैं माखनलाल चतुर्वेदी जी की आवाज मैं यह कविता सुनना चाहूँगा।