कवि, चित्रकार, वास्तुकार। हिंदीअंग्रेजी दोनों भाषाओं में लेखन। हिंदी में 13 काव्यसंग्रह और एक यात्रावृत्त।

 

आवाज़ें चुप हैं

आवाज़ें चुप हैं
क्या हो गया शहर को!
बस कुत्तों के भौंकने के स्वर हैं हवा में
मरा तो नहीं है शहर अभी
लोग चल रहे हैं
चल रही है शहर की सांस
मरा नहीं है कुनबा अभी
लोग चल रहे हैं
चल रही है कुनबे की सांस
बस कहीं कुछ ग़लत हो गया
कोई पुल भरभरा कर ढह गया नदी में
जो सदियों से जोड़े था सबको
घोंसले ध्वस्त हो गए
तिनके छितर कर उड़ गए आकाश में
खंडहर हो गया अपनापन
एक घर था यहां चार दीवारों वाला
कई दीवारें हैं अब अदृश्य
कटघरे ही कटघरे
भयावह सन्नाटा
कठघरों में बैठे हैं काठ के शरीर
मन और मस्तिष्क
रंगीन चमकदार परदों की दुनिया में कहीं
ब्लैकहोल में खींच लिए गए
भीड़ में अकेले चले जा रहे हैं लोग
कोई बताए
ये भीड़ अंतत: जाएगी कहां!

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