दोपहर का खाना, बरसाती आदि पीठ पर लादकर ले जाने वाला मेरा झोला काफी पुराना और जीर्ण अवस्था में पहुंच चुका था। एक दिन बाजार से गुजरते हुए अचानक दुकान में टंगे झोलों पर नजर पड़ी तो एक खरीद लिया।

घर पहुंचकर पत्नी को बताया तो बोली, ‘ठीक किया, खरीद लिया। कई दिनों से सोचकर भी खरीदने का अवसर नहीं आ पाया था।’

थोड़ी देर बाद सात वर्षीय बेटी खेलकर लौटी तो झोले पर उसकी नजर पड़ी। देखते ही बोल पड़ी, ‘पापा, आपको कैसे पता चला?’

‘क्या?’ मैंने पूछा।

‘यही कि मेरा बैग पुराना हो गया है और नया चाहिए…!’ वह चहक रही थी।

‘पापा…!’ पत्नी ने बोलना चाहा, लेकिन मैंने इशारे से चुप रहने का संकेत किया और कहा, पापा अंतर्यामी होते हैं न!’

‘थैंक यू पापा!’ मुझे गले लगाते हुए उसने खुशी का इजहार किया और अपनी सहेलियों को नया बैग दिखाने चली गई।

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