३२ वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। पूर्व विभागाध्यक्ष, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, आईटीएम विश्वविद्यालय, ग्वालियर, मप्र. कविता संग्रह -‘बसंत के पहले दिन से पहले’ जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित।
लड़कियो हँसो और खूब हँसो कि
तुम्हारी हँसी से कोई डरता है
तुम्हारी हँसी से टूटता है
उसका तिलिस्म और आभामंडल
कि भरभरा कर दरकने लगती हैं
अभेद्य दीवारें उसके दुर्ग की
खिलखिला कर हँसो कि
तुम्हारी हँसी में शामिल हैं वैदिक ऋचाएं
कुरान की आयतें और सबद भी
हँसती रहना कि तुम्हारे हँसने से ही
सामने आएगा उसके मुखौटे के पीछे
छुपा असली चेहरा
हँसते खिलखिलाते हुए आना कविता में
ताकि कवि को स्मरण रहे
सिर्फ विरुद ही नहीं लिखना है
बचाना है पृथ्वी पर
लड़कियों की हँसी को भी
ठहाका लगाना कभी
किसी पुराने चुटकुले पर बेबात ही
ठसाठस भरी मेट्रो के कॉमन कोच में
सहेलियों के झुंड के बीच
कानाफूसी करते-करते ठठाकर हँस देना
कि पुरुष मुस्करा उठें तुम्हारी हँसी पर
सुनो लड़कियो
जब तानाशाह सुनाए गल्प
तब भी रोकना मत अपना अट्टहास
कभी फिस्स-से हँस पड़ना
कभी खिलखिला कर
राजसभा में तानाशाह की खुशी के लिए
हँसेंगे सभासद झूठी हँसी
चारण तुम्हारी हँसी को ‘ईशनिंदा’ कहेंगे
बिना दंड के भय के हँसते रहना
कि तुम्हारी हँसी से ही तो मुस्कराते हैं बुद्ध
तुम्हारे हँसने से डरता है तानाशाह
उसे स्वप्न में भी
डराने आती है तुम्हारी हँसी
हँसते रहना
तब तक जब तक तानाशाह
झोला उठा कर चल न दे।
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