अद्यतन पुस्तक गुरतुर मया’ (छत्तीसगढ़ी हाइकु संग्रह)। संप्रति व्याख्याता।

 

पूछूंगा बंदूकों से

तुम कल मुझे जल्दी उठाना
मुझे खेतों में जाना है
उन बच्चों की आत्माएं बोने
जो यूक्रेन के बीज हैं
बच्चों की स्मृति में
मैं क्षमा मांगूंगा ईश्वर से
अपनी अनजानी गलतियों की
कि मैं उन्हें नहीं बचा पाया

सुनो कल मेरा व्रत है
उन्हीं भूखे बच्चों का साथ देने
उनकी भूख से अपनी भूख मिलाकर
पूछूंगा बंदूकों-तोपों से
उनका क्या कसूर था
सुना है भूख में
शक्ति होती है पूछने की

परसों वहां जाऊंगा
मोमबत्ती और फूल लेकर
उनकी आत्मा की शांति के लिए
उनकी मांओं की सांत्वना में साथ खड़ा होने
उनके स्कूल की घंटी बजाने
कहीं कोई बच्चा बचा हो तो
लौट आए अपने बस्तों के संग
खुशियां समेटे, चहक बगराने

मुझे तपस्या में रहने दो
मैं किसान हो जाना चाहता हूँ
उनकी नई फ़सल उगने तक
उन्हें पालने-पोषने के लिए
मिट्टी-धूप और हवा के खिलाफ
याद रखना
किसान और शिक्षक की पुकार मिलकर
एक दिन ज़रूर हरियाएंगे
बच्चों की ख़ुशियां
संभावनाएं सदा ज़िंदा रहती हैं।

तोप का रौब

तोप बड़ी ही तोप थी
उन दिनों जब
उसकी सांसें चलती थीं
किसी राजा की तरह
दहाड़ती थी
तूफान की तरह
सांसें लेती थी
किसी राक्षस की तरह
कई टन बारूद खाती थी
हर किसी की पगड़ी
अपनी जूती में रखवाने का
हुनर इसने सिखाया है
जिधर से गुजरे
लोग सलाम बजाने
पंक्ति में खड़े हो जाते थे
अब बूढ़े हो गए हैं
झर गए हैं दांत और नाखून
कोई नहीं डरता उससे
पड़े हैं वे चौराहों पर
बने हुए हैं सेल्फी पॉइंट
पर याद रखना होगा हमें
वक्त सबका हिसाब रखता है
तोप का रौब
किसी बुजुर्ग की तरह बर्फ हो गया है।

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