युवा कवि। संप्रति अध्यापन।

मेरे बेटे

बेटे!
मशीन बनती दुनिया में
तुम मनुष्य बने रहना
इतना बचे रहना
कि जब दूर कहीं कोयल कूके
तो ठहर कर उसकी आवज सुन सको
आसमां में चांद मुस्कुरा रहा हो
तो थोड़ी देर रुक कर उसके साथ मुस्कुरा सको
रात में जब तारे अठखेलियां कर रहे हों
तो उनसे घड़ी भर बतिया सको,
बिल्ली को अब भी मौसी
और कौआ को मामा कह सको
जब कभी खेतों में जाओ
फसलों के फूलों को चूम सको
लहराती बालियों को देखकर
भूख का स्वाद महसूस कर सको
मेरे बेटे
इतना मनुष्य बने रहना

बेटे!
इतना मनुष्य बने रहना
कि राह चलते कोई असहाय दिख जाए
तो अपना एक अंगुल उसकी तरफ बढ़ा सको
जब जिंदगी के इम्तिहान में बैठो
दूसरे को हराने की नहीं
बल्कि अपने सफल होने की
उम्मीद मन में रखना
कभी किसी आईने में देखना अपना चेहरा
इस जमाने की मक्कारी का दाग
उसमें नजर न आए
तुम्हारा चेहरा दिखे निश्छल बेदाग
तुम्हारा अक्श जस का तस
मौजूद रहे तुझमें, मेरे बेटे!

द्वारा :हिंदी प्रवक्ता, गवर्नमेंट कॉलेज (कड़पा, आंध्र प्रदेश-516004  मो. 8520027825