फाइल लेकर बाहर निकला तो देखा बरामदे के बाहर एक मजदूर हाथ में कुल्हाड़ी जैसा बड़ा हथौड़ा लेकर खड़ा था। मैं उससे कुछ कहता, उससे पहले वह बोल पड़ा, ‘साहेब, फर्श क्यों तुड़वा रहे हैं?’
मैंने फर्श को गौर से देखा। मुझे समझते देर नहीं लगी। फंड आया हुआ था, उसे खर्च करना था। पूरे बिल्डिंग को चमकाया जाना है। टेंडर हो चुका है। मजदूर को फर्श तोड़ने के लिए भेजा गया होगा। मैंने कहा, ‘तुम्हें तोड़ने का काम मिला है, तोड़ो।’
‘फिर भी साहेब, तुड़वा क्यों रहे हैं?’
शायद वह मुझे ही बड़ा साहेब समझ रहा था। मैंने कहा, ‘ये टूटेगा तो नया टाइल्स लगेगा।’
‘लेकिन यह फर्श सभी बहुत चमकदार है!’
उसकी बात सुनकर मैंने फर्श को ध्यान से देखा। पहले के जमाने का था और अभी चमकदार था। मैंने कहा, ‘तुम्हें तोड़ने की मजदूरी मिलेगी, तोड़ो। चिंता क्यों करते हो!’
उसने हथौड़े को सिर से ऊपर उठाया और घम्म से मारा। मैं पीछे हट गया। सीमेंट में हल्का सा क्रैक आया। टूटा नहीं। वह बोला, ‘अभी भी इतना मजबूत है कि टूट नहीं रहा है।’
‘थोड़ा जोर लगाकर मारो। खाना नहीं खाया है क्या?’ मैंने उसे पिंच किया।
‘साहेब, अगर हमारा ऐसा फर्श होता तो कभी नहीं तोड़ता’, कहते हुए उसने और जोर से हथौड़ा मारा और ‘आह’ जैसी कोई आवाज निकाली, जैसे हथौड़ा उसी पर चला हो!
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