राजस्थानी भाषा के प्रमुख कवि और कथाकार। हिंदी में भी लेखन। ‘फिजा के समंदर में’ हिंदी कविता संग्रह। राजस्थानी तिमाही पत्रिका ‘कथेसर’ का संपादन। अनेक संस्थानों से पुरस्कृत।
पत्नी-1
पत्नी सोचने लगी है कि
आखिर वह पत्नी क्यूं है?
पत्नी होने के मायने खोजने लगी है पत्नी
उसकी आंखों से होकर
एक पर एक दृष्टा गुजरने लगे हैं
वह देखती है कि
राखूंडे1 के पास
एक दुबली-पतली पीत वर्ण औरत
जूठे बर्तनों के ढेर पर
कई घंटों से बैठी है
और धीरे-धीरे
एक-एक बर्तन का काट व मैल
हाथों की रगड़ से
उसकी देह में समाता जा रहा है
बर्तन चमचमाते जा रहे हैं
वह देखती है कि
घंटों भर की जूझ के साथ
एक औरत
मैले कपड़ों के ढेर का
पूरा मैल अपने भीतर सोख लेती है
और एक लंबी तनी पर
झक कपड़ों के साथ
सूखने लगती है
इससे पूर्व उसने
साबुन से गल चुके नाखूनों
के दर्द को कम करने के लिए
उन पर मुंह से फूंक मार कर
कुछ राहत हासिल की है
वह देखती है कि
एक औरत थेपड़ी2 के रास्ते हारे3 में
प्रविष्ट होकर
धुएं में से निकल रही है
अपनी आंखें मल रही है
ओढ़नी के पल्लू से
धुएं का दर्द मसल रही है
वह देखती है कि
एक कृषकाय औरत
गीली लकड़ियों के साथ
चूल्हे में सुलग-सुलग
धुआंती-धुआंती
रोटियों में तब्दील होकर
थालियों तक पहुंच रही है
वह देखती है कि
एक औरत
बच्चों को स्कूल भेजने की तैयारी में
बुरी तरह हांफ रही है
वह देखती है कि एक औरत
पति को काम पर भेजने की हड़बड़ी में
कांप रही है
वह देखती है कि
एक औरत
इसी कर्म-शृंखला के बीच
थोड़ा सा समय निकाल
मन हल्का करने को
बंद कमरे के किसी कोने में दुबक
घड़ी भर को
फफक आती है
वह देखती है कि
एक औरत
सूरज से बहुत पहले
आंगन में उग जाती है
जबकि उस वक्त पूरा घर
पूरा घर जो पति है
नींद का लुत्फ ले रहा होता है
वह हाथ में बुहारी लेकर
कूड़े-करकट के साथ
घर का सारा अंधेरा
बुहारने में जुट जाती है
और सुबह होते-होते
सूरज को आंगन में
उतार ही लेती है
वे अब दो हो जाते हैं
सूरज और वह
तब रात होने तक
सूरज के साथ-साथ
दौड़ती रहती है
खपती रहती है वह
पर सूरज तो सूरज है बेचारा
थक जाता है
पत्नी थोड़े ही है सूरज
उसका साथ छोड़
रात के साथ सो जाता है
पर वह तो
तब भी दौड़ती रहती है
अकेली
निपट अकेली
आधी रात तक
आधी रात
और पौ फटने के बीच का काला वक्त
वह वक्त है
जिसमें वह
खाट पर पड़ी-पड़ी
बेहोशी में
दिन के सारे काम
दुबारा करती है
और कराहते हुए
करवट बदलती रहती है।
1. राखूंडा : वह स्थान जहां बर्तन मांजे जाते हैं।
2. थेपड़ी : मवेशियों के गोबर से पाथे गए कंडे।
3. हारे : गोलाकार चूल्हा।
संपर्क : परलीका वाया : गोगामेड़ी, जिला हनुमागनढ़, राजस्थान– 335504 मो.9166734004