10 अक्टूबर को प्रगतिशील लेखक संघ की उत्तर प्रदेश इकाई ने रामविलास शर्मा की 108 वी जयंती पर एक वेब संगोष्ठी का आयोजन किया, जिसका विषय था ‘रामविलास शर्मा : इतिहास और आलोचना की संगति’। इसमें प्रमुख वक्ता के रूप में अभय कुमार दुबे ने वि-औपनिवेशिकता और वि-उपनिवेशीकरण में फर्क करते हुए बताया कि उपनिवेशवाद ने अफ्रीकी भाषाओं को समाप्त कर दिया, पर यह भारतीय भाषाओं को नष्ट नहीं कर सका था। चिंताजनक यह है कि रामविलास शर्मा जो भी बताते हैं अंग्रेजी विद्वान उसका कोई संज्ञान नहीं लेते। भाषा, ज्ञान और विचारों की दुनिया का वि-उपनिवेशीकरण रामविलास शर्मा का एक प्रमुख कार्य है। आधुनिकता और औपनिवेशिकता यूरोपीय उपनिवेशवाद के दो प्रमुख स्तंभ हैं। रामविलास जी ने इन्हें प्रश्नांकित किया। उन्होंने यूरोप केंद्रित सोच का विरोध किया।
चर्चित आलोचक वैभव सिंह ने कहा कि रामविलास शर्मा ने अतीत और इतिहास को समझने के लिए ऐतिहासिक भौतिकवाद का उपयोग किया है। उनके प्रमुख काम भारतेंदु, प्रेमचंद, महावीर प्रसाद द्विवेदी और निराला पर केंद्रित हैं। उन्होंने इन कामों के बाद अतीत के ज्ञान को खंगालने का काम किया है और ऋग्वेद आदि का अध्ययन किया। रामविलास शर्मा ने मार्क्सवाद और नवजागरण पर विशेष रूप से काम किए। वे मार्क्सवाद का राष्ट्रीय संस्करण प्रस्तुत करते हैं।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में शंभुनाथ ने कहा कि हम आलोचनात्मक दृष्टि और इतिहास की विस्मृति के दौर में हैं। ऐसे समय में रामविलास शर्मा का साहित्य हमें अतीत की सांस्कृतिक विरासत को आलोचनात्मक आत्मीयता से देखने की प्रेरणा देता है। वे विभिन्न कट्टरताओं से टकराते हुए हमें नवजागरण के महान आदर्श से परिचित कराते हैं। उनके व्यक्तित्व और आलोचना में गजब की संगति है। वे प्रगतिशील आंदोलन के लिए प्रकाश स्तंभ की तरह हैं। संगोष्ठी का संचालन संजय श्रीवास्तव ने किया और स्वागत भाषण आनंद शुक्ला ने दिया। इस दिन उन्नाव के उनके पैतृक गांव में भी एक समारोह हुआ और जगह-जगह कार्यक्रम हुए।