वरिष्ठ कवयित्री। ‘खिड़कियां झरोखे और लड़कियां’ (काव्य संग्रह)। अलोचना पुस्तक ‘कवियों के कवि शमशेर’।

बौने

जो अपने से बड़ा
किसी को भी नहीं गिनते
अपने से बेहतर
किसी को नहीं मानते
वे ऊंची और….और ऊंची
गगनचुंबी
विशालकाय मूर्तियां बनवाते हैं
यह उनका सुरक्षा कवच है
यह उनकी ढाल है
यह आश्रय-स्थली है

इतिहास साक्षी है
मूर्तियां खंडित होती हैं
टुकड़ों में
संग्रहालय की जगह घेरती हैं
इक्के दुक्के अध्ययनकर्ताओं के
शोध का विषय बनती हैं

ढूंढ़ते हैं शोधकर्ता
मूर्तियों के गुण
आंकते हैं उनकी कला को
निकालते हैं निष्कर्ष
उसमें शासक की परख होती है
वे डरते नहीं हैं
इतिहास की चादर से रक्षित हैं
वे न चाटुकार हैं
न समर्थक
वे हैं शोधक
वे खोजते हैं
मस्जिदों की दीवारों पर मंदिरों के शिखर
और मंदिरों की दीवारों पर मस्जिदों के गुंबज
देखते हैं घालमेल ध्यान से
देखते हैं दीवारों पर उकेरी गई शिल्प सज्जा
देवी देवताओं राजाओं की प्राचीन कथाएं
श्रम करते आम जन
दर्पण देखती सुंदरियां
जालियों पर फूल पत्तों की बेलियां
खुशख़तों में उकेरी गई आयतें
संचित ज्ञान की इबारतें
अगर ये पढ़ी जाएं
तो देती हैं समझदारियां आने वाली पीढ़ियों को
कई पुश्तों तक

उन्हें उकेरते शिल्पी हैं
लेकिन उनपर अपनी मुद्रा
अंकित करते हैं शासक
जो इतिहास के पन्नों में अनपढ़े रह गए

फिर भी
प्यास बुझाने के लिए बनाई गई हैं
खूबसूरत नक्काशीदार बावड़ियां
आश्रय पाने के लिए
लंबे मार्गों के किनारे बनाई गई हैं
धर्मशालाएं
इतिहास को लांघते हुए
धूल से सनी
टूटी-फूटी ही सही
अब भी
याद दिलाती हैं
शासक की जन-मुखी अनुकंपाएं

ये ऊंची-ऊंची मूर्तियां
खंड-खंड टूटी-बिखरी
संग्रहालयों में सजे
इतिहास के मलबे में
खोजती हैं
अपने ही हाथ-पैर
हँसती हैं हमारे साथ याद करते हुए
शासकों की टूटी हुई तनी गरदनें

बवंडरों की तरह आते हैं
मधुमक्खियों की तरह घेरते हैं
टूटी मूर्तियों पर लूंबते-लटकते
बेपरवाह अनगढ़ टूरिस्ट
उनकी पट्टी बंधी आंखों से
गुज़रती हैं ये मूर्तियां
काली रात में हवा-सी

पीढ़ी-दर-पीढ़ी
अपने अदूरदर्शी शासक की याद में
बिसूरती हैं
ये गगनचुंबी मूर्तियां
इतिहास के फड़फड़ाते पन्नों की
धूमिल इबारत में

फिर भी
हर युग में बौने बनवाते हैं
ऊंची-ऊंची मूर्तियां।

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