वरिष्ठ कथाकार। कहानी संग्रह ‘तुमको नहीं भूल पाएंगे‘।
बहुत दिनों बाद
गाछ से टपके आम बीनने
तुम अब भी बेतहाशा दौड़ लगाती हो
तुम उतनी ही बातूनी हो अब भी
क्या आज भी मुस्कुराते समय
तुम्हारे गालों पर बनते हैं डिंपल
एक खत मिला था मुझे अनाम
प्रेषक का नाम नहीं लिखा था
लिफाफा के ऊपर
लिखावट से पहचान लिया था मैंने तुम्हें
तुम्हारे चेहरे पर अब झांकती होंगी
उम्र की झाइयां
सफेद हो रहे बालों में
लगाती होगी तुम रंग रोगन
देखो न
मैं भी अब वैसा कहां रह गया हूँ
किताब में रखी सूखी पंखुड़ियों-सी
मेरे जहन में बसी हैं कुछ यादें
मेरी कल्पना में
एक अल्हड़ लड़की आती है अकसर
बांस की फुनगी पर आज भी
आकर बैठता है चांद
पोखर में अभी भी खिलती है कुमुदिनी
पैरों में पायल पहनकर
आती है सांझ
जैसे तुम आती थी मुझसे मिलने।
अचानक फोन की घंटी
कानों में बज उठी
चांदी की सैकड़ों घंटियां
सुनी मैंने नारी कंठ की खनकती हुई आवाज
जानी पहचानी सी आवाज
बहुत वर्षों के बाद
बातें होती रहीं तवील
मूसलसल बरसात की मानिंद
यहां की वहां की
दुनिया जहां की
गांव की उस अमराई की
लंबी जुदाई की
हमारे संवाद में था आवेग
जैसे फूट पड़े हों सैकड़ों झरने
कल-कल, छल-छल ध्वनि
गूंजती रही कानों में
महसूसते रहे हम
अनूठा रस पीते रहे
बहुत दिनों के बाद।
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