युवा कवयित्री।अद्यतन कविता संग्रह गीली मिट्टी के रूपाकारउपन्यास पच्चीकारियों के दरकते अक्स

धमकी दी थी

धमकी दी थी
खत्म कर देने की
और डराना चाहा था हवा से
धूप की कीमत पर खरीदनी चाही थी सांसें
यह जान लेने के बाद
कि खत्म करना मुश्किल होता है
ठीक वैसे ही जैसे
एक डूबते जहाज को
बचाना आसान नहीं होता
मेरी आंखों से
खत्म होता खौफ देख लेने के बाद
जाने क्यों वह रोता रहा जार-जार।

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