युवा कवयित्री। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।

बुतपरस्ती

जबकि मैं लिख सकती थी कविता
मेरा जन्म कविता लिखने के लिए नहीं हुआ

एक बाउल नूडल्स एक फ्लास्क कॉफी
जगजीत सिंह की चार गजलों से
हो सकता था मेरे दिन का गुजारा

मैं दिन गुजार सकती थी
सूरज से नजरें मिलाकर
सूरज में वह तेज नहीं था
जैसा तेज तर्रार रफीक होता था

खैर! रफीक की बात छोड़ो
आनंद भी बुरा नहीं था
आनंद मिल जाता तो मैं लिख सकती थी कविता

कोई मेरे दिल से पूछे
कैसी छूटती है हाथ आई कविता

मैंने हाथ छुड़ाती कविता के पीछे भागना
मुनासिब नहीं समझा

सोचा कि वह गया वक्त है
लौट आएगा इतिहास की बीती तारीख की तरह

मेरा सोचना मुझ जैसा झूठा निकला
झूठे सच की तरह

मैंने सोचा मिलेगा प्यार आजाद हिंदोस्तान में
आजादी की तरह
मेरा सोचना गलत नहीं था
मैंने पढ़ी थी रोमियो और जूलियट की कथा
मैं रोमियो जूलियट की दीवानी हो गई

इंतजार करती रही अल्फ्रेड पार्क में बैठी
नीम अंधेरे में चेतन के आने का
देखती रह गई बंद हाथघड़ी की सुइयां

नजर उठा कर देख नहीं सकी
कि अल्फ्रेड पार्क में ही तो खड़ा था वह बांका
मूंछों पर ताव देता

नाम था चंद्रशेखर आजाद
जिससे प्रेम की खातिर हुआ था जन्म मेरा
उस बुत को जब मैंने रौशन दोपहर में देखा
मेरी आंख पत्थर की हो गई

वह बुत था या इलाहाबाद था मेरा
मेरी पत्थर की आंख को भरोसा हुआ
भरोसे की आंख से मैंने दुनिया को देखा

आसान था दुनिया के प्रेम में पड़ना
कठिन था प्रेम में पड़कर
कविता में लिखना।

और भी गम हैं जमाने में

सुनो प्रज्ञा!
जब तुम कहती हो
एक मुर्गी देहात की सड़क
इस तरह से पार करती है
जैसे वोट देने जाने का जरूरी काम
करता है आदमी

मैं कहूंगी मुर्गी और पंछी
बोलते नहीं
जीवन को जीवन से भर देते हैं

उदास क्षणों में देखा है सूने आसमान में
टिटहरी को उड़ते हुए

परवाज से आसमान रंगों से भर जाता है
पीली टांगों वाली टिटहरी जानती है
पंखों से रंग बिखेरना और समेटना

तुम न कहना प्रज्ञा कि
पंछियों से आगे की बात करो
पछियों की बात आसमान की बात होती है

आसमान जिसे धरती ने कांधे पर उठा रखा है
जैसे अंगूर की बेटी ने उठा रखी है सर पर दुनिया

दुनिया में एक शहर इलाहाबाद भी है
रुचि संगम की लड़की है
जहां गंगा नदी जमुना से मिलती है
और जमुना सरस्वती से
संगम के जल से सीखा है मिलना-मिलाना
मेरी रगों में लहू कम संगम का जल ज्यादा है

लोग कहते हैं इलाहाबाद की बात न करो
और भी राम है जमाने में इलाहाबाद के सिवा
मैं मोहब्बत के ख्याल से दूर
फलटन से महाबलेश्वर चली गई
जहां धरती आकाश से मिलती है इको प्वाइंट पर

वहां ओस से भीगा बादल कर रुमाल
ये कांधे पर आ गिरा

महाबलेश्वर कह रहा था
घने जंगल में अगर खो जाओ
बादल का रुमाल हिला देना
सूरज पठार से उतर कर
घर जाने का रास्ता दिखा देगा

मैं फलटन के बाद
महाबलेश्वर के प्रेम में पड़ गई
अपने पहले प्यार
इलाहाबाद को भुलाने की कोशिश में।

संपर्क: श्रीमंत, प्लॉट नं. 51, स्वामी विवेकानंद नगर, फलटन, जिलासतारा, महाराष्ट्र415523/ मो. 9560180202