वरिष्ठ कवि, आलोचक और लोक साहित्य के विद्वान। ‘साखी’ पत्रिका के संपादक। रैदास के पदों का काव्यांतरण हाल में प्रकाशित। बनारस हिंंदू विश्वविद्याल के हिंदी विभाग के पूर्व–प्रोफेसर।
पहली नज़र का प्यार
वे दोनों मानते हैं कि
एक आकस्मिक से जुनून ने उन्हें जोड़ा
ऐसी सुनिश्चितता सुंदर है
किंतु अनिश्चितता
और ज़्यादा सुंदर
चूंकि वे पहले कभी नहीं मिले थे
इसलिए उन्हें पूरा यकीन है
कि इसके पहले उनके बीच कुछ था ही नहीं
लेकिन सड़कों, सीढ़ियों, गलियारों से
उठती अफ़वाहें कहती हैं
संभव है वे एक-दूसरे के पास से
करोड़ों बार गुज़रे हों
मैं उनसे पूछना चाहती हूँ
क्या उन्हें याद नहीं है-
किसी घूमने वाले दरवाज़े में हुआ
पल भर का आमना-सामना
शायद भीड़ में
बुदबुदाया गया कोई ‘सॉरी’
टेलीफोन के रिसीवर में अटका
रूखा सा ‘रांग नंबर’
लेकिन मैं उत्तर जानती हूँ
वे कहेंगे
नहीं! याद नहीं!
शायद उन्हें यह जानकर ताज्जुब हो
कि संयोग उनके साथ सालों से खेल रहा था
वह उनकी नियति बनने के लिए
पूर्णतः तैयार नहीं था
वह उन्हें पास लाता
अलग कर देता
हँसी दबाते हुए
उनका रास्ता रोक रखा था
और अचानक परे हट गया
चिह्न और संकेत थे
भले ही वे उन्हें अभी तक पढ़ नहीं पा रहे थे
शायद तीन साल पहले
या अभी पिछले मंगलवार
कोई एक पत्ता फड़फड़ाया
एक कंधे से दूसरे कंधे तक
कुछ गिरा और फिर उठा लिया गया
किसे मालूम
शायद वह
बचपन की घनी झाड़ियों में खो गई
गेंद रही हो
दरवाज़े के हैंडल
और घंटियां थीं
जहां एक छुअन ने दूसरी छुअन को
पहले से ही
ढक लिया था
चेक करने के बाद
अगल-बगल रखे सूटकेस
किसी रात का
संभवतः एक ही सपना
जो सुबह होने तक धुंधला गया
हर शुरुआत
अंततः
महज एक अगली कड़ी है
घटनाओं के किताब की
हमेशा आधी बची रहती है।
विवशता
हम जीने के लिए
दूसरे जीव(न) का भोजन करते हैं
मृत पत्तागोभी के साथ सूअर का शव
हर मेनू एक मृत्यु लेख है
दयालु से दयालु आत्माओं वाले
सदय लोगों को भी
ऐसी चीजों को खाना और पचाना पड़ता है
जिन्हें मार डाला गया हो
ताकि उनके उदार दिल
धड़कते रहें
यहां तक कि सबसे मधुर कवि भी
यहां तक कि सबसे नैष्ठिक और कठोर तपस्वी भी
उस चीज़ को चबाते
और निगल जाते हैं
जो किसी समय
जीवित रही है
मैं अच्छे देवताओं के साथ भी
इसका सामंजस्य नहीं बिठा सकती
जब तक कि वे नितांत भोले भाले
या फिर
निपट भोंदू न हों
और उन्होंने प्रकृति को
दुनिया का सर्वाधिकार न दे दिया हो
और वह
उन्मत्त होकर, हमें भूख भेजती हो
और जहां से भूख शुरू होती है
मासूमियत वहीं से खत्म हो जाती है
भूख तुरंत ही
इंद्रियों की ताक़त के साथ मिल जाती है
स्वाद, गंध, स्पर्श और रूप
क्योंकि हम यह ध्यान देने से ज़रा भी नहीं चूकते
कि किस प्लेट में
कौन से व्यंजन परोसे गए हैं
यहां तक कि
जो कुछ भी घटित होता है
उसमें सुनना भी एक बड़ी भूमिका निभाता है
क्योंकि खाने की मेज़ पर ही
अक्सर मज़ेदार बातें होती हैं।
हाथ
सत्ताईस हड्डियां
पैंतीस मांसपेशियां
लगभग दो हज़ार तंत्रिका कोषिकाएं
मौजूद हैं
हमारी पांचों उंगलियों के
हर एक पोर में
पर इतना ही पर्याप्त से कहीं ज्यादा हैं
मेन काम्फ*
या कि पूह कॉर्नर**
लिखने के लिए।
आईना
हां, मुझे याद है वह दीवार
अपने ढहा दिए गए शहर की
वह क़रीब पांचवीं मंजिल तक खड़ी थी
चौथी मंज़िल पर
एक आईना टंगा था
एक असंभव सा आईना
बिना टूटे
साबुत
मजबूती से जड़ा हुआ
वह नहीं दिखाता
किसी का चेहरा
बाल संवारते हुए
कोई हाथ
कमरे के उस पार का
कोई दरवाज़ा
ऐसा कुछ भी नहीं
जिसे तुम कह सको
जगह
जैसे वह छुट्टी पर हो –
जीता जागता आकाश
उसमें निहारता था
तेज हवाओं में अस्त व्यस्त हो रहे बादल
चमचमाती बारिश से धुली मलबे की धूल
उड़ते हुए पक्षी, तारे और सूर्योदय
और
वह किसी अच्छी तरह गढ़ी गई
वस्तु की तरह
त्रुटिरहित काम कर रहा था
बिना किसी विशेष अचरज के!
नींद में
मैंने सपना देखा कि
मैं कुछ खोज रही हूँ
जो संभवतः कहीं छिपा हुआ है
या फिर खो गया है
बिस्तरे के नीचे, सीढ़ियों के नीचे
या किसी पुराने पते के नीचे
मैंने
बेमतलब और बकवास चीजों से ठुंसी हुई
अलमारियों, बक्सों और दराजों को खंगाल डाला
अपने सूटकेसों से मैंने खींच निकाले
वे साल, वे यात्राएं जिन्हें मैं उठा लाई थी
मैंने अपनी जेबों से झाड़ डालीं
पुरानी चिट्ठियां
घास फूस
और सूखी पत्तियां
जो मेरे लिए नहीं थीं
मैं हांफते हुए
भागीदारी
आसान और मुश्किल जगहों पर
ठांव कुठांव
मैं लड़खड़ाती रही बर्फीली सुरंगों
और विस्मृति में
मैं फँसी रही कंटीली झाड़ियों
और अटकलबाज़ियों में
मैं तैरती रही
हवा और बचपन की घास में
मैंने पूरा कर लेने की जल्दी की
इसके पहले कि
वह पुरानी शाम फिर आए
वह पर्दा, चुप्पी
अंत में मैंने यह जानना बंद कर दिया
कि मैं इतनी देर से क्या खोज रही थी
मैं जाग गई
अपनी घड़ी देखी
सपना ढाई मिनट का भी नहीं था
समय ऐसी ही तरकीबों पर उतर आया है
जबसे वह सोए हुए दिमाग़ों से
टकराने लगा है।
आदान – प्रदान
सूचीपत्रों के सूचीपत्र हैं
कविताओं के बारे में कविताएं
अभिनेताओं के बारे में लिखे
दूसरे अभिनेताओं द्वारा अभिनीत नाटक हैं
पत्रों के कारण पत्र
शब्दों को स्पष्ट करने के लिए शब्द
मस्तिष्क को पढ़ने में व्यस्त मस्तिष्क
दुख हैं
जो हँसी की तरह संक्रामक हैं
रद्दी कागजों से निकलते कागज
देखीं गई नज़रें
शर्तों से बंधी शर्तें
छोटी नदियों के बड़े योगदान को समेटे
बड़ी नदियां
वनों के ऊपर और उनसे ऊपर उगे हुए वन
मशीनें बनाने के लिए बनाई गई मशीनें
सपनों से सहसा जगा देने वाले सपनें
दुबारा स्वस्थ होने के लिए ज़रूरी स्वास्थ्य
जितना ऊपर उतना ही नीचे ले जाने वाली सीढ़ियां
चश्मा खोजने के लिए चश्मा
ख़त्म होने से जन्मी प्रेरणाएं
और भले ही कभी कभार
नफरत के लिए नफरत
कुल मिलाकर
उपेक्षा की उपेक्षा
और
हाथों को धोने में लगे हाथ।
मेरी अपनी कविता से
हे मेरी कविता!
सबसे अच्छी स्थिति में
तुम्हें ध्यान से पढ़ा जाएगा
तुम्हारे बारे में चर्चा होगी
और तुम्हें याद रखा जाएगा
हे मेरी कविता!
ख़राब से भी ख़राब स्थिति में
तुम्हें केवल पढ़ा जाएगा
तीसरी बात यह हो सकती है
कि वास्तव में तुम लिखी जाओ
और अगले ही क्षण
गुड़ी मुड़ी करके
कूड़े में फेंक दी जाओ
चौथी और अंतिम बात
यह भी हो सकती है
कि तुम अनलिखी ही खिसक जाओ
अपने में
ख़ुशी से
कुछ कुछ गुनगुनाते हुए!
ऐसे लोग होते हैं जो
ऐसे लोग होते हैं
जो जीवन को क़तई सटीक ढंग से जीते हैं
वे अपने भीतर और अपने चारों तरफ़
सब चाक चौबंद रखते हैं
हर चीज़ के लिए एक सही ढंग
और एक माकूल जवाब
वे सहज ही अनुमान लगा लेते हैं
कौन किसके साथ है
कौन किसके चंगुल में
किस हद तक
और किस दिशा में
वे इकहरे सच पर अपनी मोहर लगा देते हैं
वे ग़ैर ज़रूरी तथ्यों को कतरने वाली मशीन
और अपरिचित लोगों को
पहले से ही तयशुदा फ़ाइलों में
फेंक देते हैं
वे उतना ही सोचते हैं
जितना जरूरी होता है
एक सेकंड भी अतिरिक्त नहीं
क्योंकि उसी सेकंड के पीछे
छिपा होता है संदेह
और जब अपने अस्तित्व से उनकी
छुट्टी हो जाती है
वे अपने काम की जगह छोड़ देते हैं
सटीक और तयशुदा निकास से
कभी-कभी मुझे उनसे
ईर्ष्या होती है
जो सौभाग्य से गुजर जाती है।
नक्शा
उस मेज़ जैसा ही सपाट है वह
जिस पर उसे रखा गया है
उसके नीचे
कहीं कोई हरकत नहीं होती
और
न ही उसे किसी निकास की तलाश है
ऊपर-मेरी मानवीय सांसें
हवा में कोई हलचल नहीं पैदा करतीं
और छोड़ देती है उसकी पूरी सतह को
जस का तस
उसके मैदान और घाटियां
हमेशा हरे रहते हैं
पठार और पहाड़
पीले और भूरे बने रहते हैं
अपने जीर्ण शीर्ण तटों से बेपरवाह
उसके सागर-महासागर
हमेशा सौम्य नीले बने रहते हैं
यहां सब कुछ छोटा, क़रीब और सहज सुलभ है
मैं ज्वालामुखियों को
अपनी उंगलियों के पोर से दबा सकती हूँ
मोटे मोटे दस्तानों के बगैर
ध्रुवों को सहला सकती हूँ
मैं एक ही नज़र में
समेट सकती हूँ हर रेगिस्तान
और उसके ठीक बगल में बहती हुई नदी को
प्राचीन जंगलों को दिखाने के लिए
महज कुछ पेड़ खड़े हैं
आप उनके बीच रास्ता नहीं भूल सकते
पूर्व और पश्चिम में
भूमध्य रेखा के ऊपर और नीचे-
सुई गिरने जैसी शांति है
और हर काले बिंदु में
लोग जिए जा रहे हैं
सामूहिक कब्रें और अचानक हुई तबाहियों का
कोई नामोनिशान नहीं है
देशों की सीमाएं बमुश्किल दिखाई देती हैं
जैसे कि वे होने और न होने के बीच
झूल रही हों
मुझे नक्शे अच्छे लगते हैं
क्योंकि वे झूठ बोलते हैं
क्योंकि वे कटु सत्य तक पहुंचने नहीं देते
क्योंकि विशाल हृदय
और अच्छी नीयत से
वे हमारे सामने एक ऐसी दुनिया फैला देते हैं
जो इस दुनिया की नहीं है।
*हिटलर की आत्मकथा
**ए ए मिल्ने द्वारा 1926 में लिखी एक मनोरंजक किताब, जो आगे चलकर बच्चों की मासूमियत का प्रतीक बनीं और कई पीढ़ियों का निर्माण किया।
(ये अनुवाद क्लेयर केवनाघ और स्टैनिस्लाव बरानजक द्वारा किए गए शिम्बोर्स्का के अंग्रेज़ी अनुवाद से किया गया है। प्रो. शुभा राव और युवा कवयित्री अंशुप्रिया के बहुमूल्य सुझावों के लिए अनुवादक आभारी है।)
साखी, एच 1/2 वी.डी.ए. फ्लैट, नरिया, बी.एच.यू. वाराणसी – 221005 मो.9450091420