सुपरिचित कवि।विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित।जिला एवं सेशन न्यायालय, भीलवाड़ा में वकालत का कार्य।

प्रेम क्या है

प्रेम क्या है
मैंने उससे पूछा
वह मौन होकर सोचती रही
तभी एक फूल खिलकर झुक गया

मैंने उससे फिर पूछा
प्रेम क्या है

वह मुस्कराती रही
एकाएक कोयल गा उठी

मैंने हमेशा उससे पूछा
प्रेम क्या है
उसने कभी कुछ नहीं बताया
सिर्फ नजरों को झुकाए रखा

हालांकि मैं जानता हूँ
प्रेम ने उसके हृदय से पाया है विस्तार
वह कोयल के हृदय से मिलकर
फूल के भीतर रहा खिला।

चरित्र
रात कभी बड़ी नहीं होती
बड़ा होता है अंधेरा
जैसे आदमी बड़ा नहीं होता
बड़ा होता है चरित्र
नहीं होता है बड़ा सागर
बड़ा होता है उसके भीतर कहीं गहरे
छुपा हुआ मोती

वो सारी चीजें जो छोटी होकर
सदा रहती हैं अदृश्य
वह किसी बड़ा होने को
करती रहती हैं छोटा।

मौन
मैं देख रहा हूँ
एक खामोश झील

एक चांद जो मुझसे होकर
उतर रहा है भीतर झील के
मेरी उदासी ओढ़कर

मैं जानता हूँ
वह अपनी निशब्दता को
डुबा देगा भीतर झील के

झील और चांद के बीच
स्तब्ध खड़ा हुआ मैं
देख रहा हूँ मरते हुए उदासी

महसूस कर रहा हूँ एक मौंन
जो धीरे-धीरे उतर रहा मेरे भीतर
मुझे करता हुआ निशब्द और निरर्थक।

संपर्क : गांवमंगरोप, तहसीलहमीरगढ़, जिलाभीलवाड़ा, राजस्थान३११०२५ मो.९९२९१७३१८४