सुपरिचित कवि।कविता–संग्रह ‘समय का पुल’, ‘लौटते हुए का होना’, ‘जाते हुए प्यार की उदासी से’।रंगकर्म से गहरा जुड़ाव।संप्रति अध्यापन। |
लौटना
जरूरी नहीं
कि लौटो यथार्थ की तरह
स्वप्न की भी तरह
तुम लौट सकती हो जीवन में
जरूरी नहीं
कि पानी की तरह लौटो
प्यास की भी तरह
लौट सकती हो आत्मा में
रोटी की तरह नहीं तो भूख की तरह
फूल की तरह नहीं तो सुगंध की तरह
लौट सकती हो
और हाँ
जरूरी नहीं कि लौटना
कहीं से यहीं के लिए हो
यहां से कहीं और के लिए भी
तुम लौट सकती हो…।
पृथ्वी का सबसे लंबा पुल नदी
स्वयं एक पुल है
पृथ्वी का सबसे लंबा पुल
पहाड़ से समुद्र को जोड़नेवाला
पहाड़ की हर बात
समुद्र तक पहुंचानेवाला
नगरों… कस्बों… जंगलों के
सुख-दुख का
निरंतर वाहक पुल
कभी मैं भी जाऊंगा समुद्र तक
उस पुल से
जो एक नदी भी है…।
हम मिलेंगे
पानी और फसल बनकर
किसी मेड़ पर हम मिलेंगे
और लहलहा उठेंगे
नमी और प्रकाश बनकर
मिलेंगे किसी शाख पर
और खिल उठेंगे बेसाख्ता
हम भूख और भोजन होकर
किसी देह में मिलेंगे
और तृप्त हो जाएंगे आत्मानंत में
एक दिन
नदी और समुद्र-रूप में
किसी छोर पर मिलेंगे
और अछोर हो जाएंगे परस्पर
हम मिलेंगे
किसी और ही जीवन में मिलेंगे
पर मिलेंगे जरूर!
संपर्क : साकेतपुरी, आर. एन. कॉलेज फील्ड से पूरब, प्राथमिक विद्यालय के समीप, हाजीपुर, वैशाली, पिन : 844101 (बिहार) मो.9430800034
पठनीय एवं आनंददायक
शुक्रिया और आभार!
‘वागर्थ’ के संपादक डॉ. शंभुनाथजी का आभार कि उन्होंने मेरी कविताओं को स्थान दिया और उन्हें विशाल पाठक-वर्ग के पास जाने का अवसर दिया। मेरी कविताएँ इस पत्रिका में भी प्रकाशित होती रही हैं। 2016 के मार्च के अंक में भी मेरी पाँच कविताएँ प्रकाशित हुई थीं। तब इसके संपादक कवि एकांत श्रीवास्तव हुआ करते थे।