वरिष्ठ कवि। रचनाएं कई पत्र–पत्रिकाओं में प्रकाशित। संप्रति भारतीय वायुसेना से सेवानिवृत।
गज़ल
आप में हम में कमी है, सच कहूँ तो
ब़र्फ धमनी में जमी है, सच कहूँ तो
ख़ूब हो – हल्ला रहेगा कुछ दिनों तक
फ़िक्र अपनी मौसमी है, सच कहूँ तो
हादसे पर हादसा फिर हादसा है
आँख में अब तक नमी है, सच कहूँ तो
आज भी वो हँस रहा ज़िंदा जलाकर
आग लगना कब थमी है, सच कहूँ तो
काश! ये इंसान बन पाता ख़ुदारा
आदमी बस आदमी है, सच कहूँ तो।
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