कोलकाता पुस्तक मेला के प्रेस कार्नर में वाणी प्रकाशन और भारतीय भाषा परिषद के लोकार्पण समारोह और ‘कृत्रिम मेधा, समाज और साहित्य’ पर एक परिचर्चा का आयोजन हुआ।
कवि और तकनीकविद सुनील कुमार शर्मा ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग जरूरत के हिसाब से होता है। औद्योगिक विकास में यह एक बड़ी क्रांति लाएगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग मानव क्षमताओं का विस्तार करते हुए मानव कल्याण और सभ्यता के विकास के लिए होना चाहिए। इसलिए एआई का विकास जिम्मेदारी और नैतिक निहितार्थ के साथ करना होगा।
लेखक और संस्कृति कर्मी मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस एक व्यावसायिक उपकरण है। यह ऐसा काम कर सकता है, जो दोहराव से पूरा हो जाता है। यह रचनात्मकता का विकल्प नहीं है। इसलिए रचनात्मकता पर कोई संकट नहीं है। मनुष्य की रचनात्मकता से ही एआई लगातार समृद्ध होगी।
प्रो. हितेंद्र पटेल ने कहा कि श्रम का आनंद और नियंत्रण की आकांक्षा 18वीं शताब्दी से ही विज्ञान और आधुनिकता के साथ मनुष्य के भीतर आ गई थी। इसके परिणाम के रूप में आई है कृत्रिम मेधा। समाज कृत्रिम मेधा और शारीरिक श्रम दोनों के बीच में किसको स्वीकार करेगा, यह समाज तय करेगा। हमको इन दोनों प्रश्नों पर विचार करना होगा।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. संजय जायसवाल ने कहा कि एआई को लेकर सबसे बड़ी चिंता है कि समाज की आखिरी पंक्ति पर खड़े लोगों के हित को ध्यान में रखा जाए। एआई का इस्तेमाल अपनी मौलिकता को विस्थापित करने के लिए नहीं, बल्कि अपनी मौलिकता को विस्तार देने के लिए होना चाहिए।
शंभुनाथ ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि कृत्रिम मेधा कितनी सभ्यता की उपलब्धि साबित होगी और कितना यह बेरोजगारी बढ़ाने वाला कारपोरेट अणु बम है, यह अभी स्पष्ट होना है। जो भी हो, मेधारोबोट मनुष्य का विकल्प नहीं हो सकते। वे एंकरिंग कर सकते हैं, उद्योगों का प्रबंधन कर सकते हैं पर मनुष्य की तरह स्वप्न नहीं देख सकते! कई बार मनुष्य ऐसे भी निर्माण कर देता है जो उसके लिए विध्वंसकारी होता है, जैसे शिव ने भस्मासुर को बनाया था।
‘सबलोग’ पत्रिका की यात्रा
रांची के प्रेस क्लब में ‘सबलोग’ पत्रिका की 15वीं वर्षगांठ और संपादक किशन कालजयी की साठोत्तरी पारी के आरंभ पर देश के लेखक, साहित्यकार, चिंतक जमा हुए। ‘संवेद’ और ‘सबलोग’ के बहाने आज की पत्रकारिता की पड़ताल तथा लघु पत्रिकाओं के भविष्य और वैचारिक पत्रिका की जरूरत को लेकर गंभीर विचार विमर्श हुआ। आयोजन में रविभूषण, रणेंद्र, प्रेमरंजन अनिमेष, योगेंद्र, राज चंद्र झा, मृत्युंजय श्रीवास्तव, घनश्याम, प्रमोद कुमार झा, विनय सौरभ, राजन अग्रवाल, गीता दूबे, मंजु श्रीवास्तव, राज्यवर्धन और अल्पना नायक सहित कई अन्य शिक्षाविद, लेखक और पत्रकारों ने अपने विचार रखे।
‘संवेद’ और ‘सबलोग’ की प्रबंध संपादक कुमकुम कालजयी ने बताया कि इन दो पत्रिकाओं के प्रकाशन ने एक पारिवारिक मिशन का रूप ले लिया है। किशन कालजयी ने ‘सबलोग’ और ‘संवेद’ की यात्रा पर फोकस करते हुए परिस्थितियों और अपने सहयात्रियों की चर्चा की। उन्होंने आज के कठिन समय में पत्रकारिता में आ रहे बिखराव और उनके बीच सही और सच्ची पत्रकारिता की उम्मीदों पर बातें रखीं ।
इस अवसर पर ‘सबलोग’ की पंद्रह वर्ष की यात्रा पर एक डॉक्यूमेंट्री प्रदर्शित की गई। डॉक्यूमेंट्री में 2009 में सबलोग के उद्घाटन के दृश्य देखने को मिले, जिसमें कई बुद्धिजीवियों ने बताया कि वे ‘सबलोग’ को ‘दिनमान’ की परंपरा की पत्रिका के रूप में देखते हैं।
‘सबलोग’ के संयुक्त संपादक प्रकाश देवकुलिश, कथाकार पंकज मित्र, कथा लेखिका रश्मि शर्मा, अनिल किशोर सहाय, राजेश करमहे, निवास चंद्र ठाकुर, रेणु त्रिवेदी मिश्रा और विवेक आर्यन की टीम ने इस कार्यक्रम को सफल बनाया।
पंकज मित्र ने कार्यक्रम के संचालन में विचार, गीत और दृश्यांकन के यथोचित मेल को बनाए रखा। धन्यवाद ज्ञापन रविशंकर सिंह ने किया ।
प्रस्तुति : विवेक आर्यन
पठनीय अंक के लिए हार्दिक बधाई।