उत्तराखंड के शिक्षा विभाग में शिक्षिका पद पर कार्यरत।एक कविता संग्रह ‘चुप्पियों में आलाप’।
रुदन की भाषा
रुदन की यह भाषा वर्तनी या व्याकरण
मैंने नहीं सीखे अन्य शास्त्रों की तरह
हिचकियों में रोने के लिए कभी
यह लजीली क्रिया एक दिन
स्वतः ही मुझमें उग आई
मनुष्येतर हो सकने की
कोमल संभावना को साथ लिए हुए
मुझे फफक कर
रोते नहीं देखा किसी ने
देह पर आघात लगने पर कभी
हां, मन पर लगे आघातों ने
मुझे निरंतर अकेला और अकेला किया
लेकिन तब भी
एक रुलाई सदा साथ रही
छुटपन की भोली साथिन की तरह
दुख व्यंजनाओं में
गड़ते रहे ठीक वहां
जहां सबसे अधिक है पीड़ा
सच तो यह है कि
जहां आकुल स्मृतियों का केंद्र है
वहां दूजी कोई सांत्वना
इतना आराम कभी नहीं देती
जितना दो घड़ी सिसकने भर से मिला करता है
यह भाषा मेरे रक्त में घुली हुई है
आदिम संस्कारों की तरह
दूधबोली से भी बहुत पहले
सीखी यह तहजीब की तरह
मेरे साथ ही यह जन्मी और बढ़ी
दुनिया की तमाम भाषाएं
इसी सहृदयता की भाषा की सहचरी हैं
यह भाषा बरतने के लिए
एक साहस चाहिए
जो केवल मनुष्यता हमें दिया करती है
तुम जो मुझे कायर समझ कर
अक्सर फेर लेते हो मुंह हिकारत से
समझ नहीं सकोगे कभी
कि मुझे कितना बांधना पड़ता है मन
यह बांध खोलने के लिए
जीवन के तमाम
बौद्धिक और नैतिक आधार
निरर्थक हैं इस भाषा के बिना
मीत मेरे!
श्वास की अंतिम लिपि
जब जीवन के पृष्ठों पर मंद पड़ जाएगी
मैं मनुष्यता की
इसी आदिम भाषा में कहा करूंगी फिर-फिर
कि मैंने कितनी पीर सही
तुमसे कितना प्रेम किया…।
संपर्क :द्वारा – चंद्र मोहन भट्ट, ए–१२ आनंद विहार कॉलोनी, एम आई टी के करीब धालवाला, मुनि की रेती, ॠषिकेश, टिहरी,गढ़वाल–२४९१३७ मो. ८००६५५९५८८