दो काव्य-संग्रह ‘माँ और अन्य कविताएं’, ‘मौन को मुखर होने दो’। भोजपुरी भाषा में भी दो साझा संग्रह।

जीवन-गीत

तुम गा सकते हो
तुम आलाप सकते हो
जीवन के सारे राग
तुम रो सकते हो
हां! तभी तो तुम गा सकते हो

कोयल गाती है
मेंढ़क भी गाता है
दोनों गाते हैं जीवन गीत
संगीत छिपा है कण-कण में
ईश्वर सुनता रहता है हर गीत
बूंदों का, नदियों का और समूची धरा का

तुम भी गाना शुरू करो
शुरू करो एक नया जीवन
बंद कर दो रोना
क्या हुआ जो टूटा कोई सपना
देखो, कोंपलें भी आ गई हैं
सुनो, आहट पतझड़ के बाद मधुमास की!

संपर्क : द्वारा जस्टिस दीपक रौशन, झारखंड उच्च न्यायालय, बंगला नंबर-4, न्यू जज कॉलोनी, डोरंडा, रांची-834002