ट्रेन में बैठे बूटन बाबू ये बातें अपने एक दोस्त से साझा कर रहे थे- ‘कोरोना जब अपने पीक पर था तो पत्नी का इलाज पहले सरकारी अस्पताल में करा रहा था।फिर कुछ गंभीर होने पर प्राइवेट हॉस्पिटल में लेकर भागा।सरकारी डॉक्टर तो उसे मार ही देता, भाई! न समय से चेक-अप, न साफ-सफाई और न ही दवा – दारू।जिनके पास थोड़ा भी पैसा हो, वे सरकारी अस्पताल में नहीं जाते।सरकारी स्कूल में ही देखिए न, थोड़ा-बहुत पैसा वाला भी अपने बच्चों को भला इनमें पढ़ाता है!’ डाक को लीजिए, डाक कई बार आपके पास बिना नुचे-चुथे यानी साबूत नहीं पहुंचेगा।रक्षा बंधन का लिफाफा फटा हुआ ही मिलेगा।इन्हीं कारणों से लोग अब फ्लिपकार्ट, अमेजन और निजी कुरियरों की सेवाएं लेने लगे हैं।बी. एस. एन. एल. का तो अब कोई सिम कार्ड ही नहीं लेता।
बातचीत के अंतराल में मैं पूछ बैठा- ‘लगता है, आप प्राइवेट सेक्टर में जॉब करते हैं?’
अपने को बचाते हुए उन्होंने पट से कहा- ‘नहीं, नहीं, मैं तो सरकारी नौकरी करता हूँ जी!
ग्राम +पोस्ट – आथर, जिला – बक्सर, बिहार–802126 मो.9832594994