वे सारे लोग सिर झुकाये खड़े थे।उनके कांधे इस कदर झुके हुए थे कि पीठ पर कूबड़-सी निकली लग रही थी।दूर से उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कई सिरकटे जिस्म पंक्तिबद्ध खड़े हैं।मैं उनके नज़दीक गया।मैं चकित था कि ये इतनी लंबी लाईन लगाकर क्यों खड़े हैं?

‘क्या मैं इस लंबी कतार की वज़ह जान सकता हूँ?’ नजदीक खड़े एक जिस्म से मैंने प्रश्न किया।उसने अपना सिर उठाने की असफल कोशिश की।लेकिन मैं यह देखकर और चौंक गया कि, उसकी नाक के नीचे बोलने के लिए कोई स्थान नहीं है।

तभी उसकी पीठ से तकरीबन चिपके हुए पेट से एक धीमी सी आवाज आई ‘हमें पेट भरना है और यह राशन की दुकान है।’

‘लेकिन यह दुकान तो बंद है।कब खुलेगी यह दुकान?’ मैंने प्रश्न किया।

‘पिछले कई वर्षों से हम ऐसे ही खड़े हैं।इसका मालिक हमें कई बार आश्वासन दे गया है कि दुकान शीघ्र खुलेगी और सबको राशन मिलेगा।’ आस-पास खड़े जिस्मों से खोखली-सी आवाजें आई।

‘तो तुम लोग …अपने हाथों से क्यों नहीं खोल लेते यह दुकान?’ पूछते हुए मेरा ध्यान उनके हाथों की ओर गया तो आंखें आश्चर्य से विस्फारित हो गई।मैंने देखा कि सारे जिस्मों के दोनों हाथ गायब थे।

त्रिपुर, आर४५१, महालक्ष्मी नगर, इंदौर ४५२०१० मो.९४२५०६७२०४

Painting : Soraya-Hamzavi-Luyeh-Abstract-art