युवा कवि। कई पत्रपत्रिकाओं में गजलें प्रकशित। इंटरनेट पत्रिका आज की ग़ज़लका 13 बरस तक संपादन। पेशे से इंजीनियर।

गज़ल

1
उजाला बुन रहे थे वो कहाँ हैं
जो लेकर लौ चले थे वो कहां हैं

उजालों की हिफ़ाज़त करने वालो
दिए जो जल रहे थे वो कहां हैं

वो किन झीलों पे बरसे हैं बताओ
जो कल बादल उड़े थे वो कहां हैं

हमारी प्यास ने पत्थर निचोड़े
कुएँ जो नक़्शे पे थे वो कहां हैं

ए पानी बेचने वालो बताओ
जो राहों में घड़े थे वो कहां हैं

लहू के लाल धब्बे सबने देखे
जो पत्थर बांटते थे वो कहाँ हैं

हवा में तैरती हिंसा की खबरें
कबूतर भी उड़े थे वो कहां हैं

ख़याल अब खाइयां है नफ़रतों की
कि पुल जो जोड़ते थे वो कहां है।

2
जब से बाज़ार हो गई दुनिया
तब से बीमार हो गई दुनिया

चंद तकनीक-दान हाथों में
एक औज़ार हो गई दुनिया

मरते लोगों को बेचती बीमा
डर का व्योपार हो गई दुनिया

जैसे जैसे दवाएं बढ़ती गईं
और बीमार हो गई दुनिया

जलते बारूद की बू आने लगी
सुर्ख़ अंगार हो गई दुनिया

जब से रुकने को मौत माना है
तेज़ रफ़्तार हो गई दुनिया

कोई झूठी ख़बर सी लगती है
एक अख़बार हो गई दुनिया

क्यों कफ़न इश्तहार बनने लगे
कैसी सरकार हो गई दुनिया

कुछ वबाओं से, कुछ दवाओं से
एक आज़ार हो गई दुनिया

है खुले पिंजरे में कैद ख़याल
ख़ुद गिरफ़्तार हो गई दुनिया।

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