युवा कवयित्री। प्रकाशित कृतियां‘तीस पार की नदियां’ और ‘वक्त कहां लौट पाता है’।
पुरखा
जब धरती सूख कर
फट जाएगी
बादल जब सघन न हो पाएंगे
मनुष्य जब बूंद – बूंद
को तरसेगा
तब लाएगी गौरैया
चोंच भर पानी
डालेगी समुद्र के पेट में
पेड़ों की जड़ों में
धरती की दरारों में
कुएं की तलहटी में
बादलों के जिस्म में
भरेगी उसमें जीने की जिजीविषा
कहती थीं दादी
गौरैया हमारी पुरखे हैं
जो करती हैं हमारी रक्षा
और बचाती है सारी
अलाएं- बलाएं से।
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