युवा कवि। फिलहाल अध्ययनरत।
बटन
अक्सर मैंने पिता को देखा है
टूटते हुए को करीने से सजाते
जब भी टूटता है कुर्ते या कोट का कोई बटन
वे उसे फिर सी लेते
इस तरह से सीते गए
बिखराव से गुजरी हर चीज को
बागी होने से बचाया
मैं जब वयस्क ओर व्यस्त होता जा रहा हूँ
तब बहुत सी वस्तुएँ टूट रही होती हैं
टूट रहा होता है मेरा सपना
पिताजी फिर खड़े होते हैं सीने के लिए
लेकिन मेरे सपने में कोई बटन नहीं होता।
अधजली सिगरेट
(चुकी सिगरेट देखते हुए दम तोड़ते मजूर का अंतिम कथ्य)
बरसात की रात में
धुआं देती चमड़े की छत में
ओले पड़ जाने से
बुझी गरमी के सिवाय है क्या
कि जिसकी देह पर अपनी आंख रखकर
भूला जा सके
सांध्य दिशाओं में टॉर्च की रोशनी में
खोई किसी कविता की तरह
आज की सुबह होती है
जिसमें मुक्तिबोध के होंठों में पिघल चुकी आग
ठंडी बुझी मालूम सोती है
बचे रहे की उम्मीद तो नहीं की गई
राख उधेड़ने की स्मृति आ रही है
सारे शब्दों में से चुना जा चुका जीना
बेकाम बेश्रम कुरेदने की अभीप्सा बची रही है
वितृष्णा की मांग रही
कि मरा जाय तो किसी दिशा में
आकाश में कोई हत्या नहीं हुई
यह मूल्य भी रहा
मूलतः आकाश की हत्या नहीं होती
लेकिन हत्यारा आकाश में दिख जरूर जाता है
मैं तुम्हें विदा करते हुए
याद दिलाना चाहता था यह।
सांध्योपरांत
सांझ उतर रही
हांफने लगे हॉर्न
होंऽ होंऽ फर्र…
एक चीरघर से उड़ी चिड़िया
हथेली पर हृदय लिए
न जाने क्यों पश्चिम की ओर
उड़ी जा रही नदी पा रही
पटरियों पर सर्र-सर्र
सांप की केंचुली थक रही है
पक रही है : मुक्ति के संक्रमण से
एक बुढ़िया खाट चाटती
ऊँघ चख रही है!
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