युवा कवि। दिल्ली में अध्ययन।
नींद
जिन्हें नींद में
अतीत और वर्तमान के सपने नहीं सताते होंगे
अपने घाव और खून में लथपथ देह की
याद नहीं सताती होगी
जिन्हें नहीं लगता होगा डर
जो बीच रात में जागकर नहीं पुकारते होंगे
किसी अपने का नाम
उन्हें कैसी नींद आती होगी?
जो भोर में उठते होंगे तरोताज़ा
जिनकी कलम नहीं लिखती होगी कोई पीड़ा
उन्हें ही आती होगी गहरी नींद।
उठते ही वे करते होंगे कसरत
बन-ठनकर चल देते होंगे काम पर
जिनका होता होगा इंतज़ार
वही लौटते होंगे मुस्कराते हुए घर
हर प्याली चाय में उठती होगी सुगंध
भीगते होंगे छपा-छप करते हुए
पानी के चहबचों में
उन्हें ही बिस्तर पर पड़ते ही आ जाती होगी नींद
उन्हें नहीं लेनी पड़ती होगी
शराब की घूंट, सिगरेट की कश और
नींद की गोलियां
जिनका कोई न कोई, कहीं न कहीं है
उन्हें ही आती होगी चैन की नींद
बाकी बस करते रहे जाते हैं इंतजार
मृत्यु सुला दे उन्हें गहरी नींद
और मुक्त कर दे रोज की कराहती जिंदगी से।
कविता पढ़ती हुई अल्हड़ लड़की
कविता पढ़ती हुई अल्हड़ लड़की
तोड़ देती है सारे माप-दंड स्त्री होने के
ठसक से पढ़ती है कविता के एक-एक शब्द
ललकारती है उस दुनिया को
जो उसे उसके हक से
ओहदे से वंचित करने को आतुर बैठी है
रुलाई नहीं फूटती उसकी
अंगारे फूटते हैं उसकी आंखों से
कवियो तुमने हम पर लिखा बहुत कुछ
किया कुछ क्यों नहीं?
हम अब भी कहीं किसी घर में जल रही हैं
किसी भ्रूण में अब भी हो रही है हमारी हत्या
कोई अब भी कर रहा हमारा अपहरण
अब भी अखबारों के पन्नों पर लिखे हैं
हमारे यौन शोषण और बलात्कार की घटनाएं
हम टॉपर तो हुए
देश के सबसे प्रतिष्ठित इम्तहानों में
लेकिन अब भी हम सुरक्षित नहीं हो पाए
अपने ही देश की सड़कों, जंगलों और वाहनों में
हमारे हिस्से क्यों नहीं आया
कविता लिखते हुए और पढ़ते हुए
यह महसूस करना कि हमको नहीं लड़ना पड़ेगा
खुद का होना साबित करने के लिए
हम जो हैं, जैसे हैं, हमें स्वीकारा, अपनाया और सम्मानित किया जाएगा
अब और नहीं लड़ना और छिपना पड़ेगा
अपने ही देश की सड़कों पर चलने के लिए
जीने के लिए।
संपर्क :आर जड एच 22, गली नं. 11, महावीर एन्कलेव, पार्ट–1, पालम डाबरी रोड, नई दिल्ली–110045
सारगर्भित लेखन
सुंदर सृजन, सूक्ष्म अवलोकन