युवा लेखिका। अद्यतन पुस्तक ‘जेल डायरी औरत का सफर – जेल से जेल तक के लिए’। संपादक ‘दस्तक नए समय की’। मानवाधिकार कार्यकर्ता।
गाजा के बच्चे
वे गाजा के बच्चे थे
खौफ से भरी उनकी आंखों में
नींद के लिए जगह नहीं बची थी
उनमें जगह बनाने के लिए
कुछ मांओं ने
बच्चों को बताया था-
जब अगली सुबह होगी
पिता निकल कर आ जाएंगे मलबे से
ढेर सारे खिलौनों के साथ
कुछ पिताओं ने
बच्चों को बताया था-
कि अगली सुबह जब सूरज निकलेगा
मां लौट आएगी
चंदा मामा से मिलकर
कुछ बच्चों को बताया गया-
कि अगली सुबह जब वे नींद से जागेंगे
सामने दस्तरख्वान बिछी होगी
और दस्तरख्वान पर
उनकी पसंद का पेट भर खाना होगा
कुछ बच्चों को बताया गया-
कि अगली सुबह जब होगी
वे स्कूल जाएंगे पहले की तरह
और साथ होंगे सारे दोस्त
वे एक साथ दौड़ लगाएंगे मैदान में
गाजा के बच्चे
खुली आंखों के ख्वाब में
दोस्तों के साथ स्कूल पहुंच गए
उन्होंने खुले मैदान में खूब दौड़ लगाई
और डेस्क पर सिर रखकर सो गए
बच्चों ने
दस्तरख्वान पर सजे
अपनी पसंद के
पेट भर पकवानों का ख़्वाब देखा
पकवान गिनते-गिनते उन्हें नींद आ गई
बच्चों ने ख़्वाब में
चंदा मामा के घर से लौटी
मां को देखा
उससे लिपट कर वे झट सो गए
बच्चों ने
अपने घर के मलबे से
बाहर आते अपने पिता को देखा
खिलौनों से धूल झाड़ते-गिनते
उन्हें नींद आ गई
गाजा के बच्चे ख्वाब में थे
जब इजरायली बम गिरा उनपर
बच्चे मारे गए-
तब उनकी आंखें मौत के खौफ से नहीं
जीवन के ख़्वाब से भरी थीं।
मेरे देश के बच्चे
मेरे देश के बच्चे
गाजा और फिलिस्तीन के बारे में
नहीं जानते
वे नहीं जानते बम के धमाकों
और धमाकों के बीच अडिग
हमारे क्रिकेट प्रेम को
अगर वे जानते
तो कट्टी कर लेते
बड़ों की पूरी जमात से
या फिर
वे उड़ा ही देते
बड़ों की दुनिया को
अपनी सहमी हुई चुप्पी से!
संपर्क : जे-1 ईडब्ल्यूएस, मेंहदौरी कॉलोनी, निकट गंगा बाल विद्या मंदिर, तेलियारगंज, इलाहाबाद-211004 मो.9506207222