वरिष्ठ आलोचक।वसुधापत्रिका से जुड़े हुए थे।

उम्मीदों की इबारत

किसान उजड़े द्वीपों का कोई टापू नहीं
न टूटी-फूटी पुरानी चीज़ों का संग्रहालय
वह मरी आत्माओं का दफ्तर भी नहीं
वह हिंसकों, अपराधियों और शैतानों का
रोज़नामचा भी नहीं
वह कब्रों के अंदर
सोई खामोशी का आईना भी नहीं है
वह गिरती-पड़ती ध्वनियों की रेलमपेल नहीं
उसका खून इतना हल्का नहीं कि
इतिहास और भूगोल से उठाकर
कोई उसे पुरातत्त्व का ठीहा बना दे

वह पुरानी पगड़ी, देशी पनही का कथा-कथन नहीं
वह देश-दुनिया की
तमाम तस्वीरों से झांक रहा है
कोई राजसत्ता अपने कुकर्मों से उसकी
हैसियत ढंक सकती नहीं
अनाज और खाद्य जिंसों की रोशनी से
पेट और आत्माओं में
सुगंध के बादल घुमड़ते हैं
किसान बेचारे नहीं हैं
षड्यंत्रों से हाथापाई करता
उनका श्रम ज़िंदा है हमेशा से

समूची ड्रामेबाजी और पाखंड लीलाओं के बरअक्स
उनकी अजेय दुनिया सजी हुई है
धूल-कचरा बिछाते नापाक इरादे
एकालापों की अंधेरी सुरंग में समा रहे हैं
किसान कभी हारता कभी जीतता
आंसुओं की ट्रेन पकड़कर
अंततोगत्वा अपने गंतव्य तक
पहुंच ही जाता है
उसे जीना भी आता है और मरना भी।

संपर्क :रजनीगंधा ०६, शिल्पी उपवन, अनंतपुर, रीवा४८६००२ (.प्र.) मो.७९८७९२१२०६